प्रयागराज का इतिहास-सम्पूर्ण जानकारी History of Prayag Raj in hindi

भाषा चुने | हिंदी | ENGLISH

प्रयागराज की गौरवशाली एवं वैभवशाली गाथा

प्रयागराज (इलाहाबाद) का गौरव इतिहास: प्रयागराज का इतिहास ऐतिहासिक दृष्टि से जनपद प्रयागराज का अतीत अत्यंत गौरवशाली और महिमामंडित रहा है। हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिक सदभाव, आध्यात्मिक, वैदिक, पौराणिक, शिक्षा, संस्कृति, संगीत, कला, सुन्दर भवन, धार्मिक, मंदिर, मस्जिद, ऐतिहासिक दुर्ग, गौरवशाली सांस्कृतिक कला की प्राचीन धरोहर को आदि काल से अब तक अपने आप में समेटे हुए प्रयागराज का विशेष इतिहास रहा है। भारतीय इतिहास में प्रयागराज ने युगों के परिवर्तन देखे हैं। बदलते हुए इतिहास के उत्थान-पतन को देखा है। प्रयागराज राष्ट्र की सामाजिक व सांस्कृतिक गरिमा का गवाह रहा है तो राजनीतिक एवं साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र भी रहा।परिवर्तन के शाश्वत नियम के अनेक झंझावातों के बावजूद प्रयागराज अस्तित्व अक्षुण्य् रहा है प्रयागराज के उत्पत्ति का इतिहास निम्न प्रकार से है। इतिहास में प्रयागराज की आज तक की जानकारी।

प्रयागराज इलाहाबाद का सम्पूर्ण इतिहास History of Prayag Raj in hindi

”रेवा तीरे तप: कुर्यात मरणं जाह्नवी तटे।”

अमृत वाहिनी गंगा तट प्रयागराज: यथा, जप – तप करना हो तो नर्मदा के तीर पर अर्थात् ऋषि मुनियो का सर्वाधिक प्रिय स्थल नर्मदा कगार है, मोक्ष प्राप्ति करनी हो तो अमृत वाहिनी गंगा तीर पर जाये। गंगा के कगार पर प्रयागराज, हरिद्वार, काशी आदि तीर्थ बसे हुए हैं। प्रयागराज का सबसे अधिक महत्व है।

प्रयागराज उत्तर प्रदेश: प्रयागराज (इलाहाबाद) उत्तर प्रदेश के प्रमुख धार्मिक नगरों में से एक है। यह गंगा, यमुना तथा गुप्त सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है। संगम स्थल को त्रिवेणी कहा जाता है। प्रयाग (वर्तमान में प्रयागराज) में आर्यों की प्रारंभिक बस्तियां स्थापित हुई थी। प्रयागराज को ‘संगम नगरी’, ‘तंबूनगरी’, ‘कुम्भ नगरी’ और ‘तीर्थराज’ भी कहा गया है। ‘प्रयागशताध्यायी’ के अनुसार काशी, मथुरा, अयोध्या इत्यादि सप्तपुरियाँ तीर्थराज प्रयाग की पटरानियाँ हैं, जिनमें काशी को प्रधान पटरानी का दर्ज़ा प्राप्त है। प्रयागराज का वर्णन सिर्फ इतिहास में ही नहीं बल्कि वेदों, पुराणों और उपनिषदों में भी बड़ी महत्ता के साथ किया गया है। प्रयागराज सिर्फ नगर ही नहीं बल्कि पूरे भारत की आस्था का केन्द्र भी है। इस धरती पर महर्षि भारद्वाज की तपोस्थली और आश्रम भी स्थित है। यहीं पर भगवान श्रीराम चन्द्र सीता और लक्ष्मण ने वन जाते हुए पहला प्रवास किया था।

“प्रयागस्य पवेशाद्वै पापं नश्यति: तत्क्षणात्।” — प्रयाग में प्रवेश मात्र से ही समस्त पाप कर्म का नाश हो जाता है ।

प्रागैतिहासिक काल में प्रयागराज (इलाहाबाद): यदि प्रागैतिहासिक काल को देखा जाए तो इलाहाबाद (प्रयागराज) उत्तर प्रदेश का इतिहास बेलनघाटी से सम्बंधित रहा है। प्रागैतिहासिक काल (पाषाण काल) पाषाण काल को तीन भागों में विभक्त किया जाता है, इन तीनो काल से बेलन घाटी के साक्ष्य मिले है।

प्रयागराज

  • पुरापाषाण काल
  •  मध्यपाषाण काल तथा
  •  नवपाषाण काल

1. पुरापाषाण काल में प्रयागराज (इलाहाबाद): बेलन नदी घाटी के पूरास्थलों की खोज और खुदाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जी आर शर्मा के निर्देशन में कराया गया। बेलन घाटी के लोहदा नाला क्षेत्र नामक स्थल से पाषाण उपकरणों के साथ साथ एक अस्थि निर्मित मातृ देवी की प्रतिमा भी मिली है। इस सभ्यता के प्रायः सभी उपकरण क्वार्टजाइट पत्थरों से निर्मित है। इन स्थलों के साक्ष्य के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इन्हें आग कृषि कार्य गृह निर्माण आदि का ज्ञान नहीं था, जबकि कुछ मात्रा में पशुपालन से परिचित होने के साक्ष्य मिलते हैं।

2. मध्यपाषाण काल में प्रयागराज (इलाहाबाद): इस काल में आग के साक्ष्य मिले है।

3.नवपाषाण काल में प्रयागराज (इलाहाबाद): प्रयागराज के बेलन घाटी स्थित कोलडिहवा का संबंध धान (चावल) की खेती के प्राचीनतम साक्ष्य से है। यहाँ से प्राप्त मिट्टी के बर्तनों की सतहों पर चावल के दाने, भूसी व फल के अवशेष चिपके हुए मिले है। यहाँ तक कि सभी उत्तर कालीन वैदिक ग्रंथ लगभग 1000.600 ई.पू. में उत्तरी गंगा मैदान में ही रचे गये थे। यहाँ तक कि सभी उत्तर कालीन वैदिक ग्रंथ लगभग 1000.600 ई.पू. में उत्तरी गंगा मैदान में ही रचे गये थे।

पौराणिक प्रयागराज (इलाहाबाद): हिन्दू मान्यता अनुसार यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहाँ भगवान श्री ब्रम्हा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ माधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विध्यमान हैं। जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है।

वेद तथा पुराणों में प्रयागराज का उल्लेख: जनपद प्रयागराज में पवित्र गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी के संगम है। वेद से लेकर पुराण तक और संस्कृति कवियों से लेकर लोक साहित्य के रचनाकारों तक ने इस संगम की महिमा का गान किया है। तीर्थराज प्रयाग की विशालता व पवित्रता के सम्बन्ध में सनातन धर्म में मान्यता है कि एक बार देवताओं ने सप्तद्वीप, सप्तसमुद्र, सप्तकुलपर्वत, सप्तपुरियाँ, सभी तीर्थ और समस्त नदियाँ तराजू के एक पलड़े पर रखीं, दूसरी ओर मात्र ‘तीर्थराज प्रयाग’ को रखा, फिर भी प्रयागराज ही भारी रहे। वस्तुतः गोमुख से इलाहाबाद तक जहाँ कहीं भी कोई नदी गंगा से मिली है, उस स्थान को प्रयाग कहा गया है, जैसे- देवप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग आदि। केवल उस स्थान पर जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है, उसे ‘प्रयागराज’ कहा गया। प्रयागराज इलाहाबाद के बारे में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-

को कहि सकई प्रयाग प्रभाऊ, कलुष पुंज कुंजर मगराऊ।
सकल काम प्रद तीरथराऊ, बेद विदित जग प्रगट प्रभाऊ।।

वैदिक तथा बौद्ध शास्त्रों में प्रयाग (इलाहाबाद): जनपद प्रयाग सोम, वरूण तथा प्रजापति की जन्मस्थली है। जिला प्रयाग का वर्णन वैदिक तथा बौद्ध शास्त्रों के पौराणिक पात्रों के विषय में भी रहा है। यह महान ऋषि भारद्वाज, ऋषि दुर्वासा तथा ऋषि पन्ना की ज्ञानस्थली थी। ऋषि भारद्वाज यहां लगभग 5000 ई०पू० में निवास करते हुए 10000 से अधिक शिष्यों को पढ़ाया। वह प्राचीन विश्व के महान दार्शनिक थें।

त्रेता युग में प्रयागराज (इलाहाबाद): जनपद प्रयागराज तीर्थ स्थल बहुत प्राचीन काल से प्रसिद्ध है और यहाँ के जल से प्राचीन राजाओं का अभिषेक होता था। इस बात का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में है। वन जाते समय श्री राम प्रयाग में भारद्वाज ऋषि के आश्रम पर होते हुए गए थे।

रामचरित मानस और रामायण में वर्णन: प्रयाग का वर्णन तुलसीदास की रामचरित मानस और बाल्मिकी की रामायण में भी है, यही नहीं सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक पुराण मत्स्य पुराण के 102 अध्याय से लेकर 107 अध्याय तक में इस तीर्थ के महात्म्य का वर्णन है।

धार्मिक ऐतिहासिकता: छठवें जैन तीर्थंकर भगवान पद्मप्रभ की जन्मस्थली कौशाम्बी रही है तो भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तम्भ रामानन्द का जन्म प्रयाग में हुआ। रामायण काल का चर्चित श्रृंगवेरपुर, जहाँ पर केवट ने राम के चरण धोये थे, यहीं पर है। यहाँ गंगातट पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम व समाधि है। भारद्वाज मुनि का प्रसिद्ध आश्रम भी यहीं आनन्द भवन के पास है, जहाँ भगवान राम श्रृंगवेरपुर से चित्रकूट जाते समय मुनि से आशीर्वाद लेने आए थे। अलोपी देवी के मंदिर के रूप में प्रसिद्ध सिद्धिपीठ यहीं पर है तो सीता-समाहित स्थल के रूप में प्रसिद्ध सीतामढ़ी भी यहीं पर है। गंगा तट पर अवस्थित दशाश्वमेध मंदिर जहाँ ब्रह्मा ने सृष्टि का प्रथम अश्वमेध यज्ञ किया था, भी प्रयाग में ही अवस्थित है। धौम्य ऋषि ने अपने तीर्थयात्रा प्रसंग में वर्णन किया है कि प्रयाग में सभी तीर्थों, देवों और ऋषि-मुनियों का सदैव से निवास रहा है तथा सोम, वरुण व प्रजापति का जन्मस्थान भी प्रयाग ही है। किसी समय प्रयाग का एक विशिष्ट अंग रहा, लेकिन अब एक पृथक् जनपद के रूप में अवस्थित कौशाम्बी का भी अपना एक अलग इतिहास है। विभिन्न कालों में धर्म, साहित्य, व्यापार और राजनीति का केंद्र बिन्दु रहे कौशाम्बी की स्थापना उद्यिन ने की थी। यहाँ पाँचवी सदी के बौद्ध स्तूप और भिक्षुगृह हैं। वासवदत्ता के प्रेमी उद्यन की यह राजधानी थी। यहाँ की खुदाई से महाभारत काल की ऐतिहासिकता का भी पता लगता है। इलाहाबाद की ऐतिहासिकता अपने आप में अनूठी है। यह इलाहाबादी अमरूद के बिना भी अधूरी सी लगती है, तभी तो शायर अकबर इलाहाबादी ने कहा है कि- “कुछ इलाहाबाद में सामं नहीं बहबूद के, धरा क्या है सिवा अकबर-ओ-अमरूद के”।

 इलाहाबाद, प्रयागराज सेना भर्ती जानकारी – यहाँ क्लिक करें

प्रयाग नाम कैसे हुआ था: हिन्दू मान्यता है कि, सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद सबसे प्रथम यज्ञ यहां किया था। इसी प्रथम यज्ञ के ‘प्र’ और ‘याग’ अर्थात यज्ञ की सन्धि द्वारा प्रयाग नाम बना। ऋग्वेद और कुछ पुराणों में भी इस स्थान का उल्लेख ‘प्रयाग’ के रूप में किया गया है। हिन्दी भाषा में प्रयाग का शाब्दिक अर्थ “नदियों का संगम” भी है – यहीं पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होता है। अक्सर “पांच प्रयागों का राजा” कहलाने के कारण इस नगर को प्रयागराज भी कहा जाता रहा है।

प्रयाग का अर्थ: ‘प्र’ का अर्थ होता है बहुत बड़ा तथा ‘याग’ का अर्थ होता है यज्ञ‘प्रकृष्टो यज्ञो अभूद्यत्र तदेव प्रयागः’ इस प्रकार इसका नाम ‘प्रयाग’ पड़ा। दूसरा वह स्थान जहां बहुत से यज्ञ हुए हों। दूसरी मान्यताओं के अनुसार हिन्दी भाषा में प्रयाग का शाब्दिक अर्थ “नदियों का संगम” भी है, यहीं पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होता है। अक्सर “पांच प्रयागों का राजा” कहलाने के कारण इस नगर को प्रयागराज भी कहा जाता रहा है।

अधयात्म नगरी है प्रयाग: प्रयागराज (इलाहाबाद) प्राचीन काल से ही आध्‍यात्‍म की नगरी के तौर पर देखा जाता रहा है। आज भी लोगों के मन में इसके लिए अपार श्रद्धा का भाव साफ तौर पर दिखाई देता है।

ब्रह्मा ने किया था यज्ञ: पृथ्वी को बचाने के लिए भगवान ब्रह्मा ने यहां पर एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था। इस यज्ञ में वह स्वयं पुरोहित, भगवान विष्णु यजमान एवं भगवान शिव उस यज्ञ के देवता बने थे। तब अंत में तीनों देवताओं ने अपनी शक्ति पुंज के द्वारा पृथ्वी के पाप बोझ को हल्का करने के लिए एक ‘वृक्ष’ उत्पन्न किया। यह एक बरगद का वृक्ष था जिसे आज अक्षयवट के नाम से जाना जाता है। यह आज भी विद्यमान है।

अमर है अक्षयवट: औरंगजेब ने इस वृक्ष को नष्ट करने के बहुत प्रयास किए। इसे खुदवाया, जलवाया, इसकी जड़ों में तेजाब तक डलवाया। किन्तु वर प्राप्त यह अक्षयवट आज भी विराजमान है। आज भी औरंगजेब के द्वारा जलाने के चिन्ह देखे जा सकते हैं। चीनी यात्री ह्वेन सांग ने इसकी विचित्रता से प्रभावित होकर अपने संस्मरण में इसका उल्लेख किया है।

चीनी यात्री ह्वेन त्सांग: वर्तमान झूंसी क्षेत्र जो कि संगम के बहुत करीब है, चंद्रवंशी (चंद्र के वंशज) राजा पुरुरव का राज्य था। पास का कौशाम्बी क्षेत्र वत्स और मौर्य शासन के दौरान समृद्धि से उभर रही थी। 643 ई०पू० में चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने देखा हिन्दू इस जगह को अति पवित्र मानते थे। वर्धन साम्राज्य के राजा हर्षवर्धन के राज में 644 CE में भारत आए चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने अपने यात्रा विवरण में पो-लो-ये-किया नाम के शहर का जिक्र किया है, जिसे इलाहाबाद माना जाता है। उन्होंने दो नदियों के संगम वाले शहर में राजा शिलादित्य (राजा हर्ष) द्वारा कराए एक स्नान का जिक्र किया है, जिसे प्रयाग के कुंभ मेले का सबसे पुराना और ऐतिहासिक दस्तावेज माना जाता है। हालांकि, इसे लेकर कुछ साफ तरीके से नहीं कहा गया है क्योंकि उन्होंने जिस स्नान का जिक्र किया है वह हर 5 साल में एक बार होता था, जबकि कुंभ हर 12 साल में एक बार होता है।

त्रिवेणी संगम: हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। यहाँ हर छह वर्षों में अर्द्धकुम्भ और हर बारह वर्षों पर कुम्भ मेले का आयोजन होता है जिसमें विश्व के विभिन्न कोनों से करोड़ों श्रद्धालु पतितपावनी गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाने आते हैं। अतः इस नगर को संगमनगरी, कुंभनगरी, तंबूनगरी आदि नामों से भी जाना जाता है। सबसे बड़े हिन्दू सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं।

प्रयाग राज कैसे बना इलाहाबाद: इस देवभूमि का प्राचीन नाम ‘प्रयाग ‘या ‘प्रयागराज’ ही था, इसे ‘तीर्थराज’ (तीर्थों का राजा) भी कहते हैं। सन् 1500 की शताब्दी में मुस्लिम शासक अकबर ने इसका नाम 1583 में बदलकर ‘अल्लाह का शहर’ रख दिया। मुगल बादशाह अकबर के राज इतिहासकार और अकबरनामा के रचयिता अबुल फज्ल बिन मुबारक ने लिखा है कि 1583 में अकबर ने प्रयाग में एक बड़ा शहर बसाया और संगम की अहमियत को समझते हुए इसे ‘अल्लाह का शहर’, इल्लाहावास नाम दे दिया।

इल्लाहावास से अलाहाबाद (इलाहाबाद): जब भारत पर अंग्रेज राज करने लगे तो रोमन लिपी में इसे ‘अलाहाबाद’ लिखा जाने लगा, जो बाद में बिगड़कर इलाहाबाद हो गया। परन्तु इस सम्बन्ध में एक मान्यता और भी है कि ‘इला’ नामक एक धार्मिक सम्राट, जिसकी राजधानी प्रतिष्ठानपुर थी, के वास के कारण इस जगह का नाम ‘इलावास’ पड़ा, जो अब झूसी है। कालान्तर में अंग्रेज़ों ने इसका उच्चारण इलाहाबाद कर दिया।

ब्रिटिश कलाकार तथा लेखक जेम्स फोर्ब्स के अनुसार: 1800 के शुरुआती दिनों में ब्रिटिश कलाकार तथा लेखक जेम्स फोर्ब्स ने दावा किया था कि अक्षय वट के पेड़ को नष्ट करने में विफल रहने के बाद जहांगीर द्वारा इसका नाम बदलकर ‘इलाहाबाद’ या “भगवान का निवास” कर दिया गया था। हालाँकि, यह नाम उससे पहले का है, क्योंकि इलाहबास और इलाहाबाद दोनों ही नामों का उल्लेख अकबर के शासनकाल से ही शहर में अंकित सिक्कों पर होता रहा है, जिनमें से बाद वाला नाम सम्राट की मृत्यु के बाद प्रमुख हो गया। यह भी माना जाता है कि इलाहाबाद नाम अल्लाह के नाम पर नहीं, बल्कि इल्हा (देवताओं) के नाम पर रखा गया है। शालिग्राम श्रीवास्तव ने प्रयाग प्रदीप में दावा किया कि नाम अकबर द्वारा जानबूझकर हिंदू (“इलाहा”) और मुस्लिम (“अल्लाह”) शब्दों के एकसमान होने के कारण दिया गया था।

इलाहाबाद (प्रयागराज) की स्थिति: इलाहाबाद (प्रयागराज) भारत के उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक नगर, इलाहाबाद जिला का प्रशासनिक मुख्यालय तथा हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थान है।

मुग़ल साम्राज्य अकबर का शासनकाल: 1526 में मुगल साम्राज्य के भारत पर पुनराक्रमण के बाद से इलाहाबाद मुगलों के अधीन आया। अकबर ने यहां संगम के घाट पर एक वृहत दुर्ग निर्माण करवाया था। मुगल काल में, यह कहा जाता है कि मुगल सम्राट अकबर जब 1575 में इस क्षेत्र का दौरा कर रहे थे, तो इस स्थल की सामरिक स्थिति से वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यहाँ एक किले का निर्माण करने का आदेश दे दिया, और 1584 के बाद से इसका नाम बदलकर ‘इलाहबास’ या “ईश्वर का निवास” कर दिया, जो बाद में बदलकर ‘इलाहाबाद’ हो गया। इस नाम के बारे में, हालांकि, कई अन्य विचार भी मौजूद हैं। आसपास के लोगों द्वारा इसे ‘अलाहबास’ कहने के कारण, कुछ लोगों ने इस विचार पर जोर दिया है कि इसका नाम आल्ह-खण्ड की कहानी के नायक आल्हा के नाम पर पड़ा था। मध्ययुगीन भारत में शहर का सम्मान भारत के धार्मिक-सांस्कृतिक केंद्र के तौर पर था। एक लंबे समय के लिए यह मुगलों की प्रांतीय राजधानी थी जिसे बाद में मराठाओं द्वारा कब्जा कर लिया गया था।

अलाउद्दीन ख़िलज़ी: अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने इलाहाबाद में कड़ा के निकट अपने चाचा व श्वसुर जलालुद्दीन ख़िलज़ी की धोख़े से हत्या कर अपने साम्राज्य की स्थापना की थी। मुग़ल काल में भी इलाहाबाद अपनी ऐतिहासिकता को बनाये रहा।

प्रयागराज (इलाहाबाद) किला: अकबर ने संगम तट पर 1538 ई. में किले का निर्माण कराया। ऐसी भी मान्यता है कि यह किला मौर्य सम्राट अशोक द्वारा निर्मित था और अकबर ने इसका जीर्णोद्धार मात्र करवाया। पुनः 1838 में अंग्रेज़ों ने इस किले का पुनर्निर्माण करवाया और वर्तमान रूप दिया। इस किले में भारतीय और ईरानी वास्तुकला का मेल आज भी कहीं-कहीं दिखायी देता है। इस किले में 232 ई.पू. का अशोक का स्तम्भ, जोधाबाई महल, पातालपुरी मंदिर, सरस्वती कूप और अक्षय वट अवस्थित हैं। ऐसी मान्यता है कि वनवास के दौरान भगवान राम इस वट-वृक्ष के नीचे ठहरे थे और उन्होंने उसे अक्षय रहने का वरदान दिया था, इसीलिए इसका नाम अक्षयवट पड़ा। किले-प्राँगण में अवस्थित सरस्वती कूप में सरस्वती नदी के जल का दर्शन किया जा सकता है।

खुसरो बाग़: इसी प्रकार मुग़लकालीन शोभा बिखेरता ‘खुसरो बाग़’ बादशाह जहाँगीर के बड़े पुत्र खुसरो द्वारा बनवाया गया था। यहाँ बाग़ में खुसरो, उसकी माँ और बहन सुल्तानुन्निसा की क़ब्रें हैं। ये मक़बरे काव्य और कला के सुन्दर नमूने हैं। फ़ारसी भाषा में जीवन की नश्वरता पर जो कविता यहाँ अंकित है, वह मन को भीतर तक स्पर्श करती है।

प्रयागराज में मौर्यकालीन इतिहास: मौर्य काल में पाटलिपुत्र, उज्जयिनी और तक्षशिला के साथ कौशाम्बी व प्रयाग भी चोटी के नगरों में थे। प्रयाग में मौर्य शासक अशोक के 6 स्तम्भ लेख प्राप्त हुए हैं। संगम-तट पर किले में अवस्थित 10.6 मीटर ऊँचा अशोक स्तम्भ 232 ई० पू० का है, जिस पर तीन शासकों के लेख खुदे हुए हैं। कालान्तर में 1605 ई में इस स्तम्भ पर मुग़ल सम्राट जहाँगीर के तख़्त पर बैठने का वाकया भी ख़ुदवाया गया। 1800 ई० में किले की प्राचीर सीधी बनाने हेतु इस स्तम्भ को गिरा दिया गया और 1838 में अंग्रेज़ों ने इसे पुनः खड़ा किया।

प्रयागराज में गुप्तकालीन इतिहास: प्रयाग गुप्त काल के शासकों की राजधानी रहा है। 200 ई० में समुद्रगुप्त इसे कौशाम्बी से प्रयाग लाया और उसके दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित ‘प्रयाग-प्रशस्ति’ स्तम्भ ख़ुदवाया गया। इलाहाबाद में प्राप्त 448 ई. के एक गुप्त अभिलेख से ज्ञात होता है कि पाँचवीं सदी में भारत में दाशमिक पद्धति ज्ञात थी। इसी प्रकार इलाहाबाद के करछना नगर के समीप अवस्थित गढ़वा से एक-एक चन्द्रगुप्त व स्कन्दगुप्त का और दो अभिलेख कुमारगुप्त के प्राप्त हुए हैं, जो उस काल में प्रयाग की महत्ता दर्शाते हैं। ‘कामसूत्र’ के रचयिता मलंग वात्सायन का जन्म भी कौशाम्बी में हुआ था। भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट माने जाने वाले हर्षवर्धन के समय में भी प्रयाग की महत्ता अपने चरम पर थी।

चीनी यात्री ह्वेनसांग लिखता है कि: “इस काल में पाटलिपुत्र और वैशाली पतनावस्था में थे, इसके विपरीत दोआब में प्रयाग और कन्नौज अपनी चरम अवस्था में थे। ह्वेनसांग ने हर्ष द्वारा महायान बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ कन्नौज और तत्पश्चात् प्रयाग में आयोजित महामोक्ष परिषद का भी उल्लेख किया है। इस सम्मेलन में हर्ष अपने शरीर के वस्त्रों को छोड़कर सर्वस्व दान कर देता था। स्पष्ट है कि प्रयाग बौद्धों हेतु भी उतना ही महत्त्वपूर्ण रहा है, जितना कि हिन्दुओं हेतु। कुम्भ मेले में संगम में स्नान का प्रथम ऐतिहासिक अभिलेख भी हर्ष के ही काल का है।

गुप्‍त से अंग्रेजों का शासनकाल: भारतवासियों के लिये प्रयाग एवं वर्तमान कौशाम्बी जिले के कुछ भाग यहां के महत्वपूर्ण क्षेत्र रहे हैं। यह क्षेत्र पूर्व में मौर्य एवं गुप्त साम्राज्य के अंश एवं पश्चिम से कुशान साम्राज्य का अंश रहा है। बाद में ये कन्नौज साम्राज्य में आया। 1526 में मुगल साम्राज्य के भारत पर पुनराक्रमण के बाद से इलाहाबाद मुगलों के अधीन आया। अकबर ने यहां संगम के घाट पर एक वृहत दुर्ग निर्माण करवाया था। शहर में मराठों के आक्रमण भी होते रहे थे। इसके बाद अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। 1765 में इलाहाबाद के किले में थल-सेना के गैरीसन दुर्ग की स्थापना की थी। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इलाहाबाद भी सक्रिय रहा। 1904 से 1949 तक इलाहाबाद संयुक्त प्रांतों की राजधानी था।

गैरीसन दुर्ग की स्थापना: 1775 में इलाहाबाद के किले में थल-सेना के गैरीसन दुर्ग की स्थापना की थी।

ब्रिटिश का शासन 1801 ई० : 1801 ई० में प्रयागराज का ब्रिटिश इतिहास शुरू हुआ तब अवध के नवाब ने इसे ब्रिटिश शासन को सौंप दिया। ब्रिटिश सेना ने अपने सैन्य उद्देश्यों के लिए किले का इस्तेमाल किया।

1857 स्वतंत्रता आंदोलन क्रांति में प्रयागराज का योगदान : भारत के स्वतत्रता आन्दोलन में भी इलाहाबाद की एक अहम भूमिका रही। प्रयागराज शहर आजादी के युद्ध का केंद्र था और बाद में अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन 1857 ई० का गढ़ बन गया। राष्ट्रीय नवजागरण का उदय इलाहाबाद की भूमि पर हुआ तो गांधी युग में यह नगर प्रेरणा केन्द्र बना। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संगठन और उन्नयन में भी इस नगर का योगदान रहा है। सन 1857 के विद्रोह का नेतृत्व यहाँ पर लियाकत अली खान ने किया था। कांग्रेस पार्टी के तीन अधिवेशन यहां पर 1888, 1892 और 1910 में जार्ज यूल, व्योमेश चन्द्र बनर्जी और सर विलियम बेडरबर्न की अध्यक्षता में हुए। महारानी विक्टोरिया का 1 नवम्बर 1858 का प्रसिद्ध घोषणा पत्र यहीं स्थित ‘मिंंटो पार्क’ में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड केनिंग द्वारा पढ़ा गया था। नेहरू परिवार का पैतृक आवास ‘स्वराज भवन’ और ‘आनन्द भवन’ यहीं पर है। नेहरू-गाँधी परिवार से जुडे़ होने के कारण इलाहाबाद ने देश को प्रथम प्रधानमंत्री भी दिया।

1858 ई०: आजादी के प्रथम संग्राम 1857 के पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी ने मिंटो पार्क में आधिकारिक तौर पर भारत को ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया था। इसके बाद शहर का नाम इलाहाबाद रखा गया तथा इसे आगरा-अवध संयुक्त प्रांत की राजधानी बना दिया गया।

प्रयागराज शहर राजनीति का गढ़: यह शहर ब्रिटिश राज के खिलाफ भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का केंद्र था जिसका आनंद भवन केंद्र बिंदु था। इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) में महात्मा गांधी ने भारत को मुक्त करने के लिए अहिंसक विरोध का कार्यक्रम प्रस्तावित किया था। प्रयागराज ने स्वतंत्रता के पश्चात भारत की सबसे बड़ी संख्या में प्रधान मंत्री पद प्रदान किया है, जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, वी.पी.सिंह। पूर्व प्रधान मंत्री चंद्रशेखर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र थे। 1904 से 1949 तक इलाहाबाद संयुक्त प्रांतों (अब, उत्तर प्रदेश) की राजधानी था।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना 1868 ई०: प्रयागराज न्याय का गढ़ बन गया जब प्रयागराज में 1868 ई० इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना हुई।

कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन यहां दरभंगा किले के विशाल मैदान में 1888 एवं पुनः 1892 में हुआ था।

आल सैंट कैथेड्रल 1871 ई०: ब्रिटिश वास्तुकार सर विलियम ईमरसन ने कोलकाता में विक्टोरिया मेमोरियल डिजाइन करने से तीस साल पहले 1871 ई० में आल सैंट कैथेड्रल के रूप में एक भव्य स्मारक की स्थापना की।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना सन् 1887 ई०: इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना सन् 1887 ई को एल्फ्रेड लायर की प्रेरणा से हुयी थी। इस विश्वविद्यालय का नक्शा प्रसिद्ध अंग्रेज वास्तुविद इमरसन ने बनाया था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय चौथा सबसे पुराना विश्वविद्यालय था। प्रयागराज भारतीय स्थापत्य परंपराओं के साथ संश्लेषण में बने कई विक्टोरियन और जॉर्जियाई भवनों में समृद्ध रहा है।

व्यवसाय की नींव प्रयागराज: देश का चौथा सबसे पुराना उच्च न्यायालय, जो कि 1866 में आगरा में अवस्थित हुआ, के 1869 में इलाहाबाद स्थानान्तरित होने पर आगरा के तीन विख्यात एडवोकेट पंडित नन्दलाल नेहरू, पंडित अयोध्यानाथ और मुंशी हनुमान प्रसाद भी इलाहाबाद आये और विधिक व्यवसाय की नींव डाली। मोतीलाल नेहरू इन्हीं पंडित नंदलाल नेहरू जी के बड़े भाई थे। कानपुर में वकालत आरम्भ करने के बाद 1886 में मोतीलाल नेहरू वक़ालत करने इलाहाबाद चले आए और तभी से इलाहाबाद और नेहरू परिवार का एक अटूट रिश्ता आरम्भ हुआ। ‘इलाहाबाद उच्च न्यायालय’ से सर सुन्दरलाल, मदन मोहन मालवीय, तेज बहादुर सप्रू, डॉ. सतीशचन्द्र बनर्जी, पी.डी. टंडन, डॉ. कैलाश नाथ काटजू, पंडित कन्हैया लाल मिश्र आदि ने इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उत्तर प्रदेश विधानमण्डल का प्रथम सत्र समारोह इलाहाबाद के थार्नहिल मेमोरियल हॉल में 8 जनवरी, 1887 को आयोजित किया गया था।

कुम्भ मेला: संगम तट पर लगने वाले कुम्भ मेले के बिना प्रयाग का इतिहास अधूरा है। प्रत्येक बारह वर्ष में यहाँ पर महाकुम्भ मेले का आयोजन होता है, जो कि अपने में एक लघु भारत का दर्शन करने के समान है। इसके अलावा प्रत्येक वर्ष लगने वाले माघ स्नान और कल्पवास का भी आध्यात्मिक महत्व है। महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार माघ मास में तीन करोड़ दस हज़ार तीर्थ प्रयाग में एकत्र होते हैं और विधि-विधान से यहाँ ध्यान और कल्पवास करने से मनुष्य स्वर्गलोक का अधिकारी बनता है। ‘पद्मपुराण’ के अनुसार प्रयाग में माघ मास के समय तीन दिन पर्यन्त संगम स्नान करने से प्राप्त फल पृथ्वी पर एक हज़ार अश्वमेध यज्ञ करने से भी नहीं प्राप्त होता-

प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नानस्य यत्फलम्।
नाश्वमेधसस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।।

1857 की क्रान्ति के बाद यहां 14 दिनों तक लहराया आजादी का झंडा: धर्म और अध्यात्म के नगर प्रयागराज की पहचान 1853 में बदल गयी। जबकि मुगल शासक बादशाह अकबर ने यमुना के तट पर एक शानदार किले का निर्माण कराया और प्रयागराज का नाम बदलकर अल्लाहाबाद कर दिया। जिसके बाद कालान्तर में मैं इलाहाबाद के नाम से मशहूर हो गया। गुलामी के इस नाम के साथ प्रयागराज का वास्ता 435 वर्षों तक बना रहा, अंग्रेजी राज के दौरान मैं कई वर्षों तक संयुक्त प्रान्त की राजधानी के तौर पर भी जाना जाता रहा। 1857 की पहली आजादी की क्रान्ति में मैं चौदह दिनों तक अंग्रेजों की गुलामी से आजाद रहा।

435 साल बाद मिला प्राचीन नाम प्रयागराज: 1947 में भारत की स्वतन्त्रता के बाद कई बार उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली सरकारों द्वारा इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने के प्रयास किए गए। 1992 में इसका नाम बदलने की योजना तब विफल हो गयी, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद विध्वंस प्रकरण के बाद अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह की सरकार के नेतृत्व में एक और बार नाम बदलने का प्रयास हुआ, जो अधूरा रह गया। 2018 में नगर का नाम बदलने का प्रयास आखिरकार सफल हो गया, 435 सालों की गुलामी को तोड़कर 18 अक्टूबर 2018 को प्रयागराज का पुर्नजन्म हुआ। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने आधिकारिक तौर पर इसका नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया।

चंद्रशेखर आजाद क्रांतिकारियों की शरणस्थली इलाहाबाद: उदारवादी व समाजवादी नेताओं के साथ-साथ इलाहाबाद क्रांतिकारियों की भी शरणस्थली रहा है। चंद्रशेखर आजाद ने यहीं पर अल्फ्रेड पार्क में 27 फ़रवरी 1931 को अंग्रेजों से लोहा लेते हुए ब्रिटिश पुलिस अध्यक्ष नॉट बाबर और पुलिस अधिकारी विशेश्वर सिंह को घायल कर कई पुलिसजनों को मार गिराया औरं अंततः ख़ुद को गोली मारकर आजीवन आजाद रहने की कसम पूरी की। 1919 के रौलेट एक्ट को सरकार द्वारा वापस न लेने पर जून, 1920 में इलाहाबाद में एक सर्वदलीय सम्मेलन हुआ, जिसमें स्कूल, कॉलेजों और अदालतों के बहिष्कार के कार्यक्रम की घोषणा हुई, इस प्रकार प्रथम असहयोग आंदोलन और ख़िलाफ़त आंदोलन की नींव भी इलाहाबाद में ही रखी गयी थी।

अल्फ़्रेड पार्क: प्रयागराज में ही अवस्थित अल्फ़्रेड पार्क भी कई युगांतरकारी घटनाओं का गवाह रहा है। राजकुमार अल्फ़्रेड ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा के प्रयागराज आगमन को यादगार बनाने हेतु इसका निर्माण किया गया था। पुनः इसका नामकरण चन्द्रशेखर आज़ाद की शहीद स्थली रूप में उनके नाम पर किया गया। इसी पार्क में अष्टकोणीय बैण्ड स्टैण्ड है, जहाँ अंग्रेज़ी सेना का बैण्ड बजाया जाता था। इस बैण्ड स्टैण्ड के इतालियन संगमरमर की बनी स्मारिका के नीचे पहले महारानी विक्टोरिया की भव्य मूर्ति थी, जिसे 1957 में हटा दिया गया। इसी पार्क में उत्तर प्रदेश की सबसे पुरानी और बड़ी जीवन्त गाथिक शैली में बनी पब्लिक लाइब्रेरी भी है, जहाँ पर ब्रिटिश युग के महत्त्वपूर्ण संसदीय कागज़ात रखे हुए हैं। पार्क के अंदर ही 1931 में इलाहाबाद महापालिका द्वारा स्थापित संग्रहालय भी है। इस संग्रहालय को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1948 में अपनी काफ़ी वस्तुयें भेंट की थीं।

प्रयागराज (इलाहाबाद) के प्रमुख संस्थान एवं कार्यालय: प्रयागराज मूल रूप से एक प्रशासनिक और शैक्षिक शहर है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, उत्तर प्रदेश के महालेखा परीक्षक, रक्षा लेखा के प्रमुख नियंत्रक (पेंशन) पीसीडीए, उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद, पुलिस मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कार्यालय। मोती लाल नेहरू प्रौद्योगिकी संस्थान, मेडिकल और कृषि कॉलेज, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईआईटी), आईटीआई नैनी और इफ्को फुलपुर, त्रिवेणी ग्लास यहां कुछ प्रमुख संस्थान हैं। सभ्यता के प्राम्भ से ही प्रयागराज विद्या, ज्ञान और लेखन का गढ़ रहा है। यह भारत का सबसे जीवंत राजनीतिक तथा आध्यात्मिक रूप से जागरूक शहर है। भारत सरकार द्वारा प्रयागराज को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है। जवाहरलाल शहरी नवीयन मिशन पर मिशन शहरों की सूची व ब्यौरे और यहां पर उपस्थित आनन्द भवन एक दर्शनीय स्थलों में से एक है।

प्रयागराज के प्रमुख घाट परम्परा: प्रयाग में घाटों की एक ऐतिहासिक परम्परा रही है।

दशाश्वमेध घाट प्रयागराज: यहाँ स्थित दशाश्वमेध घाट पर प्रयाग महात्म्य के विषय में मार्कंडेय ऋषि द्वारा अनुप्राणित होकर धर्मराज युधिष्ठिर ने दस यज्ञ किए और अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु प्रार्थना की। धर्मराज द्वारा दस यज्ञों को सम्पादित करने के कारण ही इसे ‘दशाश्वमेध घाट’ कहा गया।

रामघाट प्रयागराज (झूंसी): एक अन्य प्रसिद्ध घाट रामघाट, झूंसी है। महाराज इला जो कि भगवान राम के पूर्वज थे, ने यहीं पर राज किया था। उनकी संतान व चन्द्रवंशीय राजा पुरूरवा और गंधर्व मिलकर इसी घाट के किनारे अग्निहोत्र किया करते थे।

त्रिवेणी घाट प्रयागराज: धार्मिक अनुष्ठानों और स्नानादि हेतु प्रसिद्ध त्रिवेणी घाट वह जगह है, जहाँ पर यमुना पूरी दृढ़ता के साथ स्थिर हो जाती हैं व साक्षात् तापस बाला की भाँति गंगा-यमुना की ओर प्रवाहमान होकर संगम की कल्पना को साकार करती हैं।

संगम घाट प्रयागराज: त्रिवेणी घाट से ही थोड़ा आगे संगम घाट है। संगम क्षेत्र का एक ऐतिहासिक घाट किला घाट है। अकबर द्वारा निर्मित ऐतिहासिक किले की प्राचीरों को जहाँ यमुना स्पर्श करती हैं, उसी के पास यह किला घाट है और यहीं पर संगम तट तक जाने हेतु नावों का जमावड़ा लगा रहता है।

सरस्वती घाट प्रयागराज: संगम घाट से पश्चिम की ओर थोड़ा बढ़ने पर अदृश्य सलिला सरस्वती नदी के समीकृत सरस्वती घाट है।

रसूलाबाद घाट प्रयागराज: रसूलाबाद घाट प्रयाग का सबसे महत्त्वपूर्ण घाट है। यह घाट शहर के उत्तरी क्षेत्र में स्थित रसूलाबाद मुहल्ले में गंगा तट पर है। अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद सहित तमाम ख्यातिनाम लोगों का यहां पर अंतिम संस्कार होने के कारण इस घाट का ऐतिहासिक महत्व भी है।

शंकर घाट प्रयागराज:रसूलाबाद के समीप ही तेलियरगंज मुहल्ले में गंगा तट पर शंकर घाट है। यहां नागेश्वर महादेव मंदिर के साथ अन्य मंदिर हैं जिसमें हनुमान, गणेश, मां दुर्गा आदि की मूर्तियां विराजमान हैं।

द्रौपदी घाट प्रयागराज: कैंट थाना क्षेत्र में यह घाट गंगा तट पर स्थित है। प्रयाग स्थित 12 माधवों में बिंदु माधव यहीं पर स्थित हैं।

दारागंज श्मसान घाट प्रयागराज: शहर को वाराणसी से जोडऩे वाले पूर्वोत्तर रेलवे के पुल और शास्त्री पुल के बीच यह घाट स्थित है। यहां लोग आमतौर पर स्नान नहीं करते बल्कि अंतिम संस्कार क्रिया संपन्न होती है।

शिवकोटि घाट प्रयागराज: तेलियरगंज के समीप शिवकुटी मुहल्ले में गंगा तट पर यह घाट है। इसके समीप में ही नारायण आश्रम घाट, सीताराम धाम व कोटेश्वर महादेव घाट भी हैं जहां पर तीज त्योहार पर स्नानार्थियों की भीड़ जुटती है।

प्रयागराज में देखने योग्य क्या है ?

प्रयागराज (इलाहाबाद) के ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल:
इलाहाबाद (प्रयागराज) किला
स्वराज भवन प्रयागराज (इलाहाबाद)
आनन्द भवन प्रयागराज (इलाहाबाद)
इलाहाबाद उच्च न्यायालय प्रयागराज (इलाहाबाद)
रानी महल प्रयागराज (इलाहाबाद)
आल सेण्ट्स कैथैड्रिल प्रयागराज (इलाहाबाद)
दर्शनीय धार्मिक स्थल:
संगम प्रयागराज (इलाहाबाद)
हनुमान मंदिर प्रयागराज (इलाहाबाद)
शंकर विमान मण्डपम् प्रयागराज (इलाहाबाद)
हनुमत् निकेतन प्रयागराज (इलाहाबाद)
सरस्वती कूप प्रयागराज (इलाहाबाद)
समुद्र कूप प्रयागराज (इलाहाबाद)
मनकामेश्वर मन्दिर प्रयागराज (इलाहाबाद)
शिवकुटी प्रयागराज (इलाहाबाद)
महर्षि भारद्वाज आश्रम प्रयागराज (इलाहाबाद)
अन्य दर्शनीय स्थल:
चौक घंटाघर प्रयागराज (इलाहाबाद)
जवाहर प्लेनेटेरियम प्रयागराज (इलाहाबाद)
इलाहाबाद संग्रहालय प्रयागराज (इलाहाबाद)
पब्लिक लाइब्रेरी प्रयागराज (इलाहाबाद)
मेयो मेमोरियल हाल प्रयागराज (इलाहाबाद)
पत्थर गिरजाघर प्रयागराज (इलाहाबाद)
त्रिवेणी पुष्प प्रयागराज (इलाहाबाद)
अरैल प्रयागराज (इलाहाबाद)
त्रिवेणी पुष्प प्रयागराज (इलाहाबाद)
पुष्प विहार प्रयागराज (इलाहाबाद)
सोमेश्वर नाथ मन्दिर प्रयागराज (इलाहाबाद)
श्री बाला त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर प्रयागराज (इलाहाबाद)
चक्रमाधव मन्दिर प्रयागराज (इलाहाबाद)
आदिवेणी माधव मन्दिर प्रयागराज (इलाहाबाद)
नृसिंह मन्दिर प्रयागराज (इलाहाबाद)
महर्षि महेश योगी आश्रम मन्दिर प्रयागराज (इलाहाबाद)
वल्लभाचार्य जी की बैठक प्रयागराज (इलाहाबाद)
फलाहारी बाबा आश्रम मन्दिर प्रयागराज (इलाहाबाद)
सच्चा बाबा आश्रम प्रयागराज (इलाहाबाद)

क्रीड़ा परिसर: मदन मोहन मालवीय क्रिकेट स्टेडियम प्रयागराज (इलाहाबाद)
मेयो हॉल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स प्रयागराज (इलाहाबाद)
कॉलिज जिम्नेज़ियम प्रयागराज (इलाहाबाद)
बॉयज़ हाई स्कूल प्रयागराज (इलाहाबाद)
नेशनल स्पोर्ट्स एकैडमी प्रयागराज (इलाहाबाद)

Key Word: Praagraj parichay, Prayagraj ki sthapana, pryagraj ka vaidik itihas, dev bhumi prayagraj ki katha, sarvshreshth prayag raj ka pauranik mahatav evam itihas, Ganga Yamuna Sarasvati ke milan ka pavitra samgam tirth raj prayag.

प्रयागराज की ताजा खबर. प्रयाग का अर्थ. इलाहाबाद का नाम प्रयागराज कब पड़ा. इलाहाबाद दर्शनीय स्थल. इलाहाबाद का नया नाम क्या है. इलाहाबाद को भारत की राजधानी कब बनाया गया. तीन नदियों का संगम स्थल. प्रयागराज का अर्थ

Indian Army Rally Bharti Program 2024

All India Recruitment Program 2024Click Below for Complete Job Information
UHQ Quota Relation Rally 2024Click Here
TA Bharti Program 2024Click Here
Gujarat Gram-Sevak Bharti 2024Click Here
Rajasthan Forest Guard Bharti 2024Click Here
Gujarat Anganwadi Bharti 2024Click Here
Indian Navy SSR & AA Recruitment 2024Click Here
Goa Police Bharti Program 2024Click Here
Indian Army Bharti New Syllabus 2024Click Here
Soldier Selection Procedure 2024Click Here
Military Recruitment Program 2024Click Here
Indian Air Force Group C Recruitment 2024Click Here
Indian Navy Sports Quota Bharti ProgramClick Here
Responsibilities of Zila Sainik Board/ Zila Sainik Welfare OfficesClick Here
Para Commando Selection Process 2024Click Here
UP Helpline Contact Number All Districts Click Here
Military Nursing Service MNS Notification 2024Click Here
Gujarat Police Recruitment 2024Click Here
Indian Navy Tradesman Bharti 2024Click Here
UP Police SI Bharti 2024Click Here
UP Anganwadi Bharti 2024 Application Form 53000 PostClick Here

Latest State wise/ All India Govt & Civil Jobs Vacancy  2024

Indian Army Rally Bharti Program 2024

Indian Army, Navy, Air Force, Police Women Entry Scheme Indian Army Rally Date
BRO/GREF Bharti Program 2024Click Here
नेवी भर्ती 10th एंड 12th पास 2024Click Here
भारतीय सेना लिखित परीक्षा पाठ्यक्रम 2024Click Here
NHM भर्ती प्रोग्राम 2024Click Here
Mahar Regt UHQ Quota Rally 2024Click Here
AGNIVEER Sena Rally Bharti Prgram 2024Click Here
Army Rally 2024Click Here
AP Army Rally 2024Click Here
Mazgaon All India MDL Bharti 2024Click Here
ICG Recruitment Schedule 2024Click Here
TA Rally Schedule All India 2024Click Here
Goa Police SI Constable Bharti program 2024Click Here
Indian Navy SSR & AA Recruitment Program 2024Click Here
BEL Project Engineer Recruitment Program 2024Click Here
Kerala State Army Rally All Trades Barti 2024Click Here
All India AMC Relation Bharti Program Click Here
11 GRRC UHQ Quota Rally 2024 (India/Nepal)Click Here
58 GTC UHQ Quota Rally Program (India/Nepal)Click Here
14 GTC UHQ quota and relation rally (India/Nepal)Click Here
Indian Navy 10+ 2 Entry Scheme 2024Click Here
8 Ways Women to Join Indian NavyClick Here
7 Ways Girls to Join Indian ArmyClick Here
Punjab Army Rally 2024Click Here
ARO Mangalore Army Rally Bharti Program 2024Click Here
Garhwal Rifle Army Relation Bharti Program 2024Click Here
Madras Regt Center Army Relation Bharti 2024Click Here
Himachal Pradesh Army Rally Bharti 2024Click Here
Dogra Regt Army Relation Bharti 2024Click Here
ARO Agra Army Rally Bharti Program 2024Click Here
ARO Almora Army Rally Program 2024Click Here
ARO Pithoragarh Army Rally Program 2024Click Here
Lakshadweep Army Rally Bharti ProgramClick Here
Tripura Army Rally Bharti Program 2024Click Here
ARO Rohtak Army Rally 2024Click Here
Fatehpur Army Open Rally 2024Click Here
Bihar Army Open Rally 2024Click Here
राजस्थान पुलिस भर्ती ऑनलाइन आवेदन 2024Click Here
All District of 7 NE States Army Open Rally 2024Click Here
ASC Center Bangalore Army Rally 2024Click Here
Port Blair Army Rally for A&N 2024Click Here
RT JCO Rally Program 2024Click Here
ARO Muzaffar Rally (all Trades) 2024Click Here
ZRO Danapur Army Rally Program 2024Click Here
ARO Mumbai Rally Program 2024Click Here
ARO Aurangabad Rally Program 2024Click Here
ZRO Jaipur Army Rally All ARO 2024Click Here
Jharkhand Rally Program 2024Click Here
TA Rally Bharti 2024Click Here
RO Kolkata Army Rally 2024Click Here
Odisha Army Rally All District 2024Click Here
West Bengal Army Rally all district 2024Click Here
ARO Amethi Army Rally Bharti Program 2024Click here
ARO Bareilly Rally 2024ARO Bareilly
1 STC Army Rally Bharti 2024Click Here
2 STC Army Open Rally Bharti 2024Click Here
ARO Pune Army Rally Bharti 2024Click Here
ARO Kolhapur Army Rally 2024Click Here
Goa Army Rally Bharti 2024Click Here
ARO Varanasi Army Rally Program 2024Click Here
ARO Lucnow Army Rally Program 2024Click Here
ARO Agra Army Rally Program 2024Click Here
ARO Bareilly Army Rally Program 2024Click Here
ARO Meerut Army Rally Program 2024Click Here
ARO Meerut Army Rally Program 2024Click Here
ARO Lansdwone Army Rally Program 2024Click Here
ARO Palampur Army Bharti Program 2024Click Here
ARO Vishakhapatnam Army Bharti Program 2024Click Here
ARO Mhow all District Army Bharti 2024Click Here
ARO Belgaum Army Rally Bharti Program 2024Click Here
ARO Varanasi Army Rally Program 2024Click Here
ARO Bhopal Army Rally Bharti 2024Click Here
ARO Gwalior Army Rally 2024Click Here
WB Army Rally 2024Click Here
AP Army Rally 2024Click Here
ARO Kolhapur Bharti 2024Click Here
HP Army Rally Program 2024Click Here
Haryana Army Rally 2024Click Here
Delhi Army Rally Bharti 2024Click Here
UP Army Rally Program 2024Click Here
MR Goa Open Army Bharti 2024Click Here
ARO Jammu Army Rally 2024Click Here
Gujarat Army Open Rally Bharti 2024Click Here
1 EME Secunderabad Relation Bharti 2024Click Here
GRD Ghoom Army Rally 2024 ProgramClick Here
Madras Regt Army Rally 2024Click Here
Ganjam Army Open Rally 2024Click Here
Arty Centre Hyderabad UHQ & Sports Bharti 2024Click Here
Rajasthan Army Rally 2024Click Here
Karimnagar Army Rally Bharti 2024Click Here
ARO Secunderabad Army Rally 2024Click Here
ARO Vizag Army Rally 2024Click Here
ARO Gunture Army Rally 2024Click Here
ARO Coimbatore Army Rally 2024Click Here
Andaman & Nocobar Army Rally 2024Click Here
ARO Chennai Army Rally 2024Click Here
Soldier Pharma Bharti Program 2024Click Here
ARO Nagpur Army Bharti Program 2024Click Here
ARO Rangapahar Army Recruitment Rally Program 2024Click Here
ARO Belgaum Army Bharti Program 2024Click Here
ARO Bangalore Army Recruitment Rally Program 2024Click Here
ARO Secunderabad Army Bharti Rally Program 2024Click Here
Latest Sports & UHQ Quota Open Bharti 2024Click Here
Assam Rifles Bharti Program 2024Click Here
ARO Gopalpur Army Rally Bharti 2024Click Here
ARO Hisar Army Rally 2024Click Here
Uttarakhand Army Bharti 2024Click Here
ARO Alwar Army Rally 2024Click Here
Army Open Rally West Bengal Schedule 2024Click Here
Himmatnagar Army Bharti Program 2024Click Here
Reasi Army Bharti 2024Click Here
Women TA Application 2024Click Here
भारतीय सेना में महिला भर्ती प्रोग्राम 2024Click Here
Girls Entry Scheme Join Indian Army 2024Click Here
Girls Entry Scheme Join
Indian Navy 2024
Click Here
Entry Scheme Join
Indian Air Force 2024
Click Hrer
WB Lady Police Bharti 2024Click Here
2 Responses to “प्रयागराज का इतिहास-सम्पूर्ण जानकारी History of Prayag Raj in hindi”
  1. pramod kumar jha,M.Sc.b.ed. May 24, 2021
  2. Nripendra kumar srivastava June 15, 2021

Leave a Reply

Don`t copy text!