बांदा का इतिहास History of Banda in Hindi

भाषा चुने | हिंदी | ENGLISH

बांदा की गौरव एवं वैभव गाथा

बांदा इतिहास/ बांदा का गौरव: भारतवर्ष अपनी विविधताओं के साथ अपना गौरवशाली इतिहास को समेटे हुये है, ऐतिहासिक दृष्टि से जनपद बांदा का अतीत अत्यंत गौरवशाली और महिमामंडित रहा है। पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक तथा औध्योगिक दृष्टि से बांदा का अपना विशिष्ट स्थान है। हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिक सदभाव, आध्यात्मिक, वैदिक, पौराणिक, शिक्षा, संस्कृति, संगीत, कला, सुन्दर भवन, धार्मिक, मंदिर, मस्जिद, ऐतिहासिक दुर्ग, गौरवशाली सांस्कृतिक कला की प्राचीन धरोहर को आदि काल से अब तक अपने आप में समेटे हुए बांदा का विशेष इतिहास रहा है। बांदा के उत्पत्ति का इतिहास निम्न प्रकार से है। इतिहास में बांदा की आज तक की जानकारी।

बाँदा का सम्पूर्ण इतिहास History of Banda in hindi

बांदा उत्तर प्रदेश का इतिहास: बांदा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक लोक सभा क्षेत्र है। बाँदा शहर बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित है। बाँदा शहर बाँदा जिले का मुख्यालय भी है। बांदा शहर केन नदी (यमुना की सहायता नदी) के किनारे बसा है।

बाँदा जिले का नामकरण: बाँदा एक एतिहासिक शहर है। बाँदा शहर का नाम महर्षि वामदेव के नाम पर बाम्दा (बाद में बांदा) पड़ा। महर्षि वामदेव की तपोभूमि बाँदा है।

बाँदा क्यों प्रसिद्ध है: बांदा केन नदी से प्राप्त गोमेद रत्नों के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध है, गोमेद रत्नों का बाँदा से बड़ी मात्रा में निर्यात किया जाता है। यहाँ विभिन्न मस्जिदें ओर हिन्दू मंदिर हैं। शहर के बाहर 18वीं शताब्दी के क़िले कालिंजर के अवशेष हैं। मुस्लिमों, मराठों, फ़्राँसीसियों और अंग्रेज़ों के बीच चले संघर्षों के दौरान बाँदा शहर व क़िले का शासन बदलता रहा।

इलाहबाद मंडल का हिस्सा बाँदा: ब्रिटिश शासन के दौरान बांदा संयुक्त प्रान्त के इलाहबाद मंडल में एक ज़िला था। 1998 में कर्वी और मऊ तहसील को ज़िले से अलग करके नया चित्रकूट जिला बनाया गया।

बाँदा जनपद की स्थिति: बाँदा ज़िलें की बाघिन, केन तथा यमुना प्रमुख नदियाँ हैं। बाँदा जिला पठारी भूमि होने के कारण भूमि काफी उबड़ खाबड़ है। बाँदा ज़िले के उत्तर में फतेहपुर जिला, पूर्व में चित्रकूट जिला, पश्चिम में हमीरपुर व महोबा जिला तथा दक्षिण में मध्य प्रदेश राज्य के छतरपुर तथा सतना ज़िला स्थित है। बाँदा ज़िले की चार तहसीलें बांदा, नरैनी, बबेरू, अतर्रा हैं।

महात्मा गाँधी का बाँदा दौरा: नवंबर 1929 में, महात्मा गांधी ने बांदा का दौरा किया था।

बांदा का बसरही किला: बांदा जिला ब्लाक बड़ोखर खुर्द के गांव बसरही में हज़ारों वर्ष पुरानी एक चैकी है। इस चैकी को लोग राजा परमाल की गढ़ी के नाम से जानते हैं। कालिंजर के राजा परमाल ने यहां पर गढ़ी बनवाई थी। इस गढ़ी का नाम चैकी है। यहां पर राजा प्रजा की बात सुनते थे और अपना निर्णय सुनाते थे।

बाँदा का प्रागैतिहासिक काल: बाँदा में पाषाण काल और नवपाषाण काल ​​के पाए गए पत्थर की मूर्तियां और अन्य अवशेष यह साबित करते हैं कि मानव सभ्यता बाँदा में भी वैसी थी जैसे देश के बाकी हिस्सों में थी। प्रागैतिहासिक काल में आदिवासी या आदिम लोग इस क्षेत्र में निवास करते थे। इस क्षेत्र से जुड़े सबसे आरंभिक आर्य लोग ऋग्वेद में उल्लिखित थे। माना जाता है कि इस क्षेत्र में एक समृद्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है।

बाँदा पर सबसे पहला शासन: बाँदा क्षेत्र के सबसे पहले शासक यायात्री थे जिनके सबसे बड़े पुत्र यदु को यह क्षेत्र विरासत में मिला था, बाद में उनकी संतानों द्वारा इसका नाम चेदि-देश रखा गया।

कालिंजर क्या है ?
कालिंजर दुर्ग उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में स्थित एक दुर्ग है। कालिंजर दुर्ग बुन्देलखण्ड क्षेत्र में विंध्य पर्वत पर स्थित यह दुर्ग विश्व धरोहर स्थल खजुराहो से 97.7 कि॰मी॰ दूर है।

कालिंजर पहाड़ी बाँदा: कालिंजर के नाम से प्रसिद्ध पहाड़ी जिसे पवित्र माना जाता है और वेदों में उल्लेख किया गया है। लोककथाओं के अनुसार प्रसिद्ध कालिंजर-पहाड़ी (कलंजराद्री) का नाम स्वयं भगवान शिव से लिया गया है, जो कालिंजर के मुख्य देवता हैं जिन्हें आज भी नीलकंठ कहा जाता है। इस जगह का उल्लेख हिंदू पवित्र पुस्तकों रामायण, महाभारत और पुराणों में भी किया गया है।

श्रीरामचन्द्र के निर्वासन स्थान: यह भी माना जाता है कि भगवान राम ने अपने निर्वासन के 14 में से 12 साल चित्रकूट में बिताए हैं, जो कुछ साल पहले तक बांदा का हिस्सा था।

चौथी शताब्दी ईसा पूर्व बाँदा: बाँदा के क्षेत्र चौथी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास मगध के नंद साम्राज्य में मिला दिया गया था, बाद में इसने 236 ईसा पूर्व में अशोक की मृत्यु तक मौर्य साम्राज्य के तहत क्षेत्र का गठन किया।

बाँदा पर राजाओ का शासन काल: पुष्यमित्र शुंग ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया जो लगभग 100 वर्षों तक शुंग के अधीन रहा और उसके बाद कुछ ही समय के लिए कुषाणों ने भी बाँदा की भूमि पर शासन किया। नागाओ तथा गुप्तो ने भी इस क्षेत्र पर शासन किया। इस क्षेत्र का नाम बाद में जेजाकभुक्ति (या जाझोटी) रखा गया। केवल कुछ समय के लिए यह क्षेत्र हूणों और फिर पांडुवमसी-राजा उदयन के अधीन हो गया।

राजा हर्ष-वर्धन का शासन काल: राजा हर्ष-वर्धन (606-647 ई0) ने उत्तर भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित किया, बाँदा क्षेत्र इस प्रभुत्व का एक हिस्सा था।

चीनी यात्री ह्वेनसांग बाँदा: एक बहुत प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग (641-642 ई0) ने बाँदा क्षेत्र का उल्लेख चिह-ची-टू और खजुराहो की राजधानी के रूप में किया है।

किल्ंजर पर आक्रमण: 11 वीं शताब्दी के पहले भाग में महमूद गज़नी के ने कई बार किल्ंजर तक मार्च किया, लेकिन उसका विरोध किया गया और उनको वापस भेज दिया गया। 1182 ई0 के दौरान, दिल्ली और अजमेर के चौहान राजा प्रियव्रजा के नाम से प्रसिद्ध चंदेला-राजा परमर्दिदेव को पराजित किया गया था, हालाँकि वे अपने स्वयं के कारणों से इस पथ को बनाए नहीं रख सके और परमर्दिदेव ने जल्द ही अपना स्थान पुनः प्राप्त कर लिया।

कुतुब-उद-दीन ऐबक किल्ंजर का पर कब्ज़ा: 1202 ई0 में कुतुब-उद-दीन ऐबक (मुहम्मद घूरी के जनरल) ने किले पर कब्जा कर लिया था, चंदेलों ने अपने क्षेत्र को पुनः प्राप्त किया और 13 वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान इस पर शासन किया।

लोदी-सुल्तानों का कालिंजर पर कब्ज़ा: लोदी-सुल्तानों ने भी थोड़ी देर के लिए कालिंजर पर कब्जा कर लिया, लेकिन फिर से हिंदू राजा के कब्जे में लौट आए। मुगल राजकुमार हुमायूँ मिज़ा ने इसे पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया लेकिन 1530 ई0 में उसके पिता बाबर की मृत्यु ने उसे इस कदम को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।

कालिंजर पर चंदेला शासको का अंत: शेरशाह सूरी ने कालिंजर (1545 ई0) के किले को घेर लिया, लेकिन इसके कब्जे से ठीक एक जंग के दौरान मारा गया। अंतिम रूप से उनके बेटे जलाल खान को इस्लाम शाह की उपाधि के तहत कालिंजर किले में शाही सिंहासन पर बैठाया गया था। चंदेला-राजा और उसके सत्तर सैनिकों को जल्द ही मार दिया गया और इस तरह कालिंजर पर लंबे चंदेला-शासन का अंत हो गया।

कालिंजर पर मुगलो का अधिकार: बघेला-राजा राम चंद्र ने कालिंजर का किला खरीद लिया, लेकिन बाद में अकबर के प्रतिनिधि मजनूं खान कुक्साल द्वारा कालिंजर पर कब्जा कर लिया गया और कालिंजर किला मुगल प्रभुत्व का एक अभिन्न हिस्सा बन गया। बाद में राजा बीरबल ने कालिंजर को अपना जागीर बना लिया। मुगल शासन के दौरान बांदा जिले के अंतर्गत अधिकांश क्षेत्र कालिंजर-सिरकर के अंतर्गत आता था। दस महल थे, जिनमें से कालिंजर-सिरकर में छह थे जैसे कि औगासी, सिहौंद, सिमौनी, शादीपुर, रसिन और कालिंजर बांदा के वर्तमान जिले का हिस्सा है।

छत्रसाल पन्ना: छत्रसाल पन्ना ने (1691 ई0) में यमुना के दक्षिण में लगभग पूरे इलाके को जीत लिया, जो आज बुंदेलखंड के नाम से जाना जाता है।

मुहम्मद खान बंगश 1728 ई0: इलाहाबाद के गवर्नर मुहम्मद खान बंगश ने 1728 ई0 बुंदेलखंड को फिर से हासिल करने की कोशिश की लेकिन उसे वापस जाना पड़ा। छत्रसाल के दूसरे पुत्र, जंगलराज को बांदा के चारों ओर किले और प्रभुत्व प्राप्त हुए जिन्हें राजधानी बनाया गया और केन नदी के पश्चिमी तट पर भूरगढ़ का किला 1746 ईस्वी के दौरान कुछ समय के लिए बनाया गया।

बाजीराव मस्तानी का बांदा से सम्बन्ध: बाजीराव से संबंध के कारण मस्तानी को भी अनेक दु:ख झेलने पड़े पर बाजीराव के प्रति उनका प्रेम अटूट था। मस्तानी के 1734 ई० में एक पुत्र हुआ। उसका नाम शमशेर बहादुर रखा गया। बाजीराव ने काल्पी और बाँदा की सूबेदारी उसे देने की घोषणा कर दी। शमशेर बहादुर ने पेशवा परिवार की बड़े लगन और परिश्रम से सेवा की। 1761 ई० में शमशेर बहादुर मराठों की ओर से लड़ते हुए पानीपत के मैदान में मारा गया।

अवध नवाब 1762 में: 1762 में अवध नवाब ने बुंदेलखंड को जीतने की कोशिश की, लेकिन बुंदेलों की एकजुट ताकतों ने तिंदवारी क्षेत्र के निकट नवाब की सेना को हरा दिया। कमांडर करामत खान और राजा हिम्मत बहादुर को पलायन करने के लिए यमुना में कूदना पड़ा।

नोनी अर्जुन सिंह की देखरेख में बांदा: 1791 ई0 में नोनी अर्जुन सिंह की देखरेख में बांदा के राजा बुंदेला ने आक्रमणकारियों का मुकाबला किया, जो पेशवा बाजी राव और उनकी मुस्लिम पत्नी मस्तानी और उनके दोस्त हिम्मत बहादुर गोसाई से संबंधित थे।

अली बहादुर के अधीन बाँदा: अली बहादुर ने खुद को बांदा का नवाब घोषित किया, बाद में 1802 ई0 में कालिंजर किले पर कब्जा करने की कोशिश करते हुए, अली बहादुर ने अपनी जान गंवा दी। यह मृतक अली बहादुर के पुत्र शमशेर बहादुर की शासन के दौरान था, जिसने बांदा को अपना निवास स्थान बनाया था। बुंदेल लोग इससे कभी संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने बांदा के नवाब का अंत तक विरोध किया। 1803 में बसीन की संधि ने ब्रिटिश शासन के तहत कानूनी तौर पर बांदा लाया, हालांकि बांदा के नवाबों ने उनके प्रवेश का विरोध किया। हिम्मत बहादुर, नवाबों के एक समय के दोस्त ने उन्हें धोखा दिया और अंग्रेजों को बर्खास्त कर दिया और नवाब शमशेर बहादुर को पराजित किया गया और 1804 ईस्वी में ब्रिटिश शासन की संप्रभुता को स्वीकार करना पड़ा।

कालिंजर पर ब्रिटिश आधिपत्य: 1812 ई0 में कालिंजर ब्रिटिश आधिपत्य में आ गया।

1857 की क्रांति में बाँदा का योगदान: मार्च 1819 में बांदा शहर को नव निर्मित दक्षिणी बुंदेलखंड जिले का मुख्यालय बनाया गया था। नवाब अली बहादुर द्वितीय ने 1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता-संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। तब बांदा जिले के निवासियों ने पूर्वी जिलों से आने वाले स्वतंत्रता सेनानियों से प्रेरित होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ बड़ी संख्या में हथियार उठाए। 14 जून को ब्रिटिश अधिकारियों ने बांदा छोड़ दिया और नवाब ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया। बांदा के नवाब ने न केवल बांदा में अपने शासन का आयोजन किया, बल्कि बुंदेलखंड में कहीं और क्रांतिकारी प्रयासों में सहायता की।

बाँदा के दर्शनीय स्थल:
कालिंजर क़िला
नीलकंठ मंदिर
चार पत्थरों का स्तम्भ
रानीपुर वन्य अभ्यारण्य
बुंदेलखंड छत्रसाल संग्रहालय
भैरों की झरिया
खत्री पहर
नवाब टैंक
भूरागढ़
महेश्‍वरी देवी मंदिर

Key Word: Banda ka itihas? Banda parichay? Banda ki sthapana? Banda ka vaidik itihas? history of Banda in hindi? Banda famous person? Banda rajput history? what is famous in Banda? Banda famous food? Banda city photo? Banda area?Banda population? Banda ka nam Banda kaise pada? Banda ki sthapana kab huyee? Banda Prasiddh kyon hai?
बाँदा की ताजा खबर. बाँदा नाम कब पड़ा. बाँदा के दर्शनीय स्थल. बाँदा का नया नाम क्या है. बाँदा प्रसिद्ध क्यों है?

Leave a Reply

Don`t copy text!