चन्दौली का इतिहास History of Chandauli in Hindi

चन्दौली का इतिहास: चन्दौली प्राचीन काल में काशी साम्राज्य का अभिन्न अंग था। भारतवर्ष अपनी विविधताओं के साथ अपना गौरवशाली इतिहास को समेटे हुये है, ऐतिहासिक दृष्टि से जनपद चन्दौली का अतीत अत्यंत गौरवशाली और महिमामंडित रहा है। पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, तथा भौगोलिक दृष्टि से चन्दौली का अपना विशिष्ट स्थान है। हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिक सदभाव, आध्यात्मिक, वैदिक, पौराणिक, शिक्षा, संस्कृति, संगीत, कला, सुन्दर भवन, धार्मिक, मंदिर, मस्जिद, ऐतिहासिक दुर्ग, गौरवशाली सांस्कृतिक कला की प्राचीन धरोहर को आदि काल से अब तक अपने आप में समेटे हुए चन्दौली का विशेष इतिहास रहा है। चन्दौली के उत्पत्ति का इतिहास निम्न प्रकार से है। इतिहास में चन्दौली की आज तक की जानकारी।

चन्दौली का सम्पूर्ण इतिहास HISTORY OF CHANDAULI IN HINDI

चंदौली उत्तर प्रदेश: चन्दौली भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जिला है। यह उस ज़िले का मुख्यालय भी है। यह उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में बिहार की सीमा से लगा हुआ है। चंदौली भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के वाराणसी मण्डल का जनपद है। चंदौली प्राचीन नगरी वाराणसी के निकट ही स्थित है। सन् 1997 मे वाराणसी जिले के एक हिस्से को अलग करके चन्दौली जिले का निर्माण किया गया था। चंदौली जिले में प्राचीन काल की अनेक मूल्यवान धरोहरों के प्रमाण भी पाये गए हैं, ईंट आदि के अवशेष भी ज़िले में मिले हैं। इस जिले के बहुत से भागों का इतिहास अभी अज्ञात है। जिले की तहसीलों में कुछ उजाड़खंड स्थान हैं, तालाब और कुण्ड हैं और उनके बारे में कई लोक-कथाएँ हैं।

चंदौली का पौराणिक इतिहास: काशी राज्य का हिस्सा होने के कारण चन्दौली का भी इतिहास वही है जो वाराणसी जिले का और काशी राज्य का है। भगवान बुद्ध के जन्म के पहले ईसा पूर्व छठीं शताब्दी में भारतवर्ष 16 महाजनपदों में विभाजित था। इनमें काशी एक था जिसकी राजधानी वाराणसी थी। वर्तमान का बनारस अपने चारों ओर के क्षेत्रों के साथ काशी महाजनपद कहा जाता था। काशी राज्य प्राचीन काल से ही विद्या का केन्द्र है। पुराणों में, महाभारत में और रामायण में इसका नाम आया है। यह हिन्दुओं का, साथ ही साथ बौद्धों और जैनों का भी पवित्र स्थान है। यह नाम राजा काशी के नाम पर पड़ा है जो इस वंश परम्परा का सातवाँ राजा था। सातवीं पीढ़ी के बाद एक विख्यात राजा धनवंतरी ने यहाँ शासन किया जिनका नाम आयुर्वेद के संस्थापक मुख्य चिकित्सक के रूप में स्मरण किया जाता है। काशी राज्य पर महाभारत के पूर्व की शताब्दी में मगध वंश परम्परा के शासक ब्रह्मदत्त का प्रभुत्व था। किन्तु ब्रह्मदत्त की वंशावली का उत्थान महाभारत युद्ध के बाद देखा गया। इस वंश परम्परा के करीब सैकड़ों राजाओं ने इस राज्य पर अपना शासन किया। इसके कुछ शासक तो चक्रवर्ती सम्राट हुआ करते थे। काशी के राजा मनोज ने कोशल, अंग और मगध की राजधानियों को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया। जैन धर्मग्रंथों के अनुसार अश्वसेवा नाम के काशी के राजा थे जो 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पिता थे। सन् 1775 में काशी राज्य ब्रिटिश शासकों के अधिकार में आ गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बनारस का भारत में विलय हो जाने पर इस पीढ़ी के सबसे अंतिम राजा महाराज विभूति नारायण सिंह थे जिन्होंने करीब आठ साल तक शासन किया।

चंदौली जिले का पुराना नाम व उपनाम: चंदौली जिले का उपनाम धान का कटोरा है।

वाराणसी से चंदौली का विभाजन कब हुआ: पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने 20 मई 1997 को वाराणसी से पृथक कर चंदौली जनपद का सृजन किया।

चंदौली जनपद की स्थापना: चन्दौली जनपद का निर्माण वाराणसी जनपद से अलग करके 20 मई 1997 में किया गया था। चंदौली ज़िले का नाम अपने तहसील मुख्यालय के नाम पर रखा गया है। चंदौली जिला प्राचीन काशी राज्य के अंतर्गत था।

चंदौली जनपद की स्थिति: चंदौली वाराणसी मण्डल का भाग है और उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में बिहार की सीमा से लगा हुआ है। जनपद चन्दौली वाराणसी से 30 कि०मी० दूरी पर पूर्व-दक्षिण-पूर्व में अक्षांश 24० 56′ से 25० 35′ उत्तर एवं 81° 14′ से 84° 24′ पूर्व में स्थित है। चन्दौली पूर्व दिशा में बिहार राज्य, उत्तर-उत्तर-पूर्व में गाजीपुर जनपद, दक्षिण में सोनभद्र जनपद, दक्षिण-पूर्व में बिहार राज्य एवं दक्षिण-पश्चिम में मिर्ज़ापुर जनपद की सीमाओं से घिरा है। कर्मनाशा नदी इस जनपद और बिहार राज्य के मध्य की विभाजन रेखा है। गंगा, कर्मनाशा और चन्द्रप्रभा नदियाँ इस जनपद की भौगोलिक और आर्थिक परिस्थितियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव रखती हैं। इस जिले में कुल 4 विधानसभा सैयदराजा, चकिया ,सकलडीहा, पं दीनदयाल उपाध्याय नगर (मुगलसराय) तथा एक लोकसभा संसदीय क्षेत्र चंदौली है।

चंदौली में पुरातात्विक खोज: कभी बनारस जिले का हिस्‍सा रहे चंदौली जिले के माटी गांव के सर्वेक्षण में दो हजार वर्ष पुरानी कुषाणकालीन ईंट और 600 से 1200 ई. के मध्‍य निर्मित हिन्‍दू देवी-देवताओं की मूर्तिंयां मिली हैं।

धान का कटोरा चंदौली: चंदौली जिले को उत्तर प्रदेश का “धान का कटोरा” के नाम से जाना जाता है। धान और चावल यहाँ की प्रमुख फसलें हैं जिन पर जनसंख्या की एक बहुत बड़ी आबादी निर्भर करती है।

बलुआ क्षेत्र चंदौली: चंदौली में सकलडीहा तहसील से 22 कि०मी० दक्षिण गंगा नदी के तट पर स्थित एक बहुत ही प्राचीन क्षेत्र बलुआ है। ऐसा कहा जाता है कि गंगा पूरे देश में केवल दो ही जगह पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं एक प्रयागराज (इलाहाबाद) में और दूसरा बलुआ में गंगा यहाँ पूरब से पश्चिम दिशा की ओर बहती हैं। हिन्दुओं का एक धार्मिक मेला हर वर्ष माघ महीने में मौनी अमावस्या के दिन लगता है। यह ’पश्चिम वाहिनी मेला’ के रूप में जाना जाता है।

सकलडीहा तहसील में अघोरेश्वर संत बाबा कीनाराम चंदौली: सकलडीहा चंदौली जिले की एक तहसील में रामगढ़ गाँव एक महान अघोरेश्वर संत बाबा कीनाराम की जन्मभूमि है। यह चहनियाँ से मात्र 06 कि०मी० की दूरी पर स्थित है। संत कीनाराम वैष्णव धर्म के महान अनुयायी थे। इनका शिव और शक्ति में गहरा विश्वास था और दैवीय शक्ति में भी दृढ़ विश्वास था। अपना पूरा जीवन इन्होंने मानव जाति की सेवा में लगा दिया। यह स्थान हिन्दुत्व का एक पवित्र स्थल माना जाता है।

हेतमपुर किला चंदौली: चंदौली जिले के हेतमपुर गाँव में एक किला है जिसे ’हेतमपुर किला’ कहा जाता है। यह चंदौली जिला मुख्यालय से 22 कि०मी० उत्तर पूर्व में यह स्थित है। हेतमपुर किले के अवशेष 22 बीघे के क्षेत्र में फैले हुए हैं। जनश्रुतियों के अनुसार 14वीं से 15वीं शताब्दी के बीच टोडरमल खत्री के द्वारा इसको बनवाया गया था जो शेरशाह सूरी के राज्य में निर्माण पर्यवेक्षक थे। मुगल काल के बाद तालुकेदार तथा जागीरदार हेतम खाँ ने इसपर कब्जा कर लिया। यहाँ पाँच मुख्य ध्वस्त वीरान कोट हैं जिन्हें भुलैनी कोट, भितरी कोट, बिचली कोट, उत्तरी कोट और दक्षिणी कोट भी कहा जाता है। यह यात्रियों को बहुत आकर्षित करती हैं। कुछ लोग कहते हैं कि यह हेतम खाँ के द्वारा स्वयं बनवायी गयी थीं। जनश्रुतियों के अनुसार एक बार किसी गांव से बरात भुलैनी कोर्ट देखने के लिए किले में गई थी। वहां आई पूरी बरात ही कोर्ट में खो गई थी। तब से उस किले के भूलैनी कोर्ट के नाम से भी जानते हैं।

बबुरी चंदौली: प्राचीनकाल में यहां बब्र वाहन नामक राजा की राजधानी थी। आल्हा-उदल से उनकी लड़ाई इतिहास में शामिल है। आल्हा उदल की लड़ाई के बाद से ही बबुरी को वीर नगर कहा जाने लगा, जो सरकारी अभिलेखों में भी दर्ज है। वहीं रानी बड़हर का डोला भी यहां पर उतरता था जिसे रानी बड़हर के नाम से जाना जाता है। अब किसी राजवाड़े परिवार के वंशज यहां नहीं रहते, परंतु उनकी स्मृतियां आज भी शेष बची हुई हैं। बबुरी के ऐतिहासिक तालाब के चारों तरफ लगभग दो दर्जन मंदिर स्थापित हैं। रामजानकी मंदिर व मजार एक ही परिसर में होने से जहां एक ओर घंटे व घड़ियाल गूंजते हैं वहीं दूसरे संप्रदाय के लोग बड़े पैमाने पर चादर चढ़ाने आते हैं व फातिहा करते हैं। इसको लेकर कभी भी सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न नहीं हुआ है।

चंदौली में धरती से प्रकट हुई कई प्रतिमाएं: चंदौली में कई मंदिरों के जमीन के अंदर से प्रकट होने की कहानियां भी प्रचलित हैं। नगई में नागेश्वरी देवी, डवक में डगेश्वरी देवी, बबुरी में बागेश्वरी देवी के साथ ह हटिया के हनुमान जी, दसई चंद्रप्रभा नदी के किनारे मिले विशाल शिव¨लग व डवक में दो शिव¨लग जमीन के अंदर से प्राप्त हुए थे। यहां मंदिर बनवाकर विधिवत दर्शन पूजन किया जाता है।

नौगढ़ किला चंदौली: नौगढ़ किला उत्तर प्रदेश के चन्दौली जिले में स्थित है। नौगढ़ किला को चंद्रकांता की कोठी के नाम से भी जाना जाता है। नौगढ़ का किला एक छोटा सा किला है। जिसका निर्माण राजा विक्रम वीरेंद्र सिंह जी ने किया है वह यहां के राजा थे। यह किला कर्मनाशा नदी के किनारे बनाया गया है जिसकी दीवारें नदी से 15 से 20 फीट की ऊंचाई पर है। ऐसी मान्यता है की इस किले के नीचे एक और किला बना हुआ है। नौगढ़ का किला बहुत ही प्राचीन और रहस्यमय भी है। राजा विक्रम वीरेंद्र सिंह यह वही राजा है जो विजयगढ़ किले की राजकुमारी चंद्रकांता बहुत प्रेम करते थे। इस किला को चंद्रकांता वन विश्राम गृह बनवा दिया गया है।

चन्द्र प्रभा वन्य जीव अभयारण्य चंदौली: चन्द्र प्रभा वन्य जीव अभयारण्य भी चंदौली जिले की चकिया और नौगढ़ तहसीलों में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि 1957 से लेकर 1970 तक चन्द्र प्रभा वन्य जीव अभयारण्य में एशियाई शेर रहते थे। हालांकि बाद में इस क्षेत्र से शेर चले गए। 9,600 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस अभयारण्य की स्थापना 1957 में ही की गई थी। चंद्रप्रभा के जंगलों में राज दरी और देव दरी के खूबसूरत झरने भी स्थित हैं जिन्हे देखने के लिए हर वर्ष बरसात के समय बहुत अधिक पर्यटक आते हैं। कर्मनासा और चंद्रप्रभा नदियां इस अभयारण्य से होकर बहती हैं।

मुगलसराय चंदौली: पं० दीन दयाल उपाध्याय नगर पहले मुगलसराय के रूप में जाना जाता था। जिले में चंद्रप्रभा (प्रकृति) अभयारण्य और कई झरने शामिल हैं, जिनमें देवदरी और राजदरी शामिल हैं।

चंदौली जनपद के महान एवं वरिष्ठ व्यक्तित्व:
चंदौली जनपद के महान एवं वरिष्ठ व्यक्तित्व:
संत रमैया
संत कीनाराम
शिवप्रसाद सिंह
सिद्धेश्वरी देवी
विद्याधरी देवी
वागेश्वरी देवी
नामवर सिंह
जनकवि रामकेर
गिरिजा देवी
कमलापति त्रिपाठी
स्वामी भगवतानन्द
अखण्डानन्द सरस्वती
जगदीश सिंह एडवोकेट
लालबहादुर शास्त्री
राजनाथ सिंह
चन्द्रिका कवि
डॉ. दशरथ ओझा
डॉ. सूर्यनारायण द्विवेदी
पं. निरंकार नाथ द्विवेदी
पं. मनोज कुमार द्विवेदी
डॉ. काशीनाथ सिंह
डॉ. महेन्द्र प्रताप वर्मा
डॉ. उमेश प्रसाद सिंह
डॉ. कृष्ण मोहन
रामजियावन दास बावला
आचार्य पारसनाथ शर्मा
रामदेव सिंह
बाबू सागर सिंह
नील कमल
एम.एन. सिन्हा मुकुल
प्रहसन सम्राट कपिलदेव सिंह
डॉ. कमलाकांत त्रिपाठी
लक्ष्मीकांत सरस
इं. सुरेश सिंह कलाशून्य
प्रो. रामचन्द्र उपाध्याय
शिवप्रसाद द्विवेदी शिव
अभिनेत्री लीला मिश्रा
अभिनेता सुजीत कुमार
फिल्मकार अनुराग कश्यप
फिल्मकार अभिनव कश्यप
फिल्मकार नेहा सिंह
अवधेश नारायण सिंह आईपीएस
पं. रामसूरत मिश्र
कामता प्रसाद विद्यार्थी
शहीद हीरा सिंह
शहीद रघुनाथ सिंह
शहीद मँहगू सिंह
शहीद कैप्टन विजयप्रताप सिंह
जगतनारायण दूबे
गंजी प्रसाद
ईश्वर शरण सिंह ( भाई जी)
सौरभ चन्द्रा एडवोकेट
बाबू प्रसिद्ध नारायण सिंह
चुन्नी लाल गुप्ता
पंडित कमला पति त्रिपाठी
खेदारू राय राजभर
लाल बहादुर शास्त्री (भारत के प्रधानमंत्री) चंदौली जिले का एक शहर है जो वाराणासी से पूर्णतः जुड़ा हुआ है मुगलसराय में उनका जन्म हुआ था।
राजनाथ सिंह (भारत के वर्तमान रक्षा मंत्री और भारत के पूर्व गृह मंत्री) चंदौली जिले के एक छोटे से गांव भभुरा में पैदा हुए।

भारतीय स्वतंत्रता में चंदौली जनपद का योगदान: भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम में चंदौली जनपद ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। चंदौली में एक गाँव है जिसका नाम घोसवान और है खाखरा जो भारत की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के विरोध के लिए जाना जाता है।

चंदौली के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान

प्रसिद्ध स्थल:
देवदारी चंदौली
लतीफ-शाह बांध चंदौली
लतीफ शाह मकबरा चंदौली
राजदरी चंदौली

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