लखनऊ का इतिहास लखनऊ 4000 वर्ष पुराना वैदिक, पौराणिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, विरासत का इतिहास लक्ष्मणपुर/ लखनपुर/लखनऊ

शान-ए-अवध-लखनऊ का 4000 वर्ष पुराना वैदिक, पौराणिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, विरासत का इतिहास:-

लखनऊ का इतिहास 2024: भारत एक ऐसा देश है जंहा पर इतिहास को पौराणिक कथाओं के रूप में प्राचीन काल से संरक्षित किया जा रहा है। जो हजारो साल पहले घटित कई महत्वपूर्ण घटनाओ के बारे में बताते हैं। भले ही उनकी सत्यता को लेकर कई विवाद हो लेकिन किसी जगह का नाम बदल जाना एक ऐसी घटना है जिसे इतिहास में दर्ज किया गया है।

लखनऊ की प्राचीनता: लखनऊ प्राचीन कौशल राज्य का हिस्सा था। यह भगवान राम की विरासत थी जिसे उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को समर्पित कर दिया था।

पुराना नाम व उपनाम: नवाबो का शहर, बागों का नगर, नजाकत – नफासत का शहर, लक्ष्मणपुर और लखनपुर

कौशल राज्य : कहा जाता है की अवध नरेश श्री राम ने अपने भाई लक्ष्मण को यह भूमि समर्पित करते हुए इसका नाम “लक्ष्मणपुर” रखा था। उत्तर भारत में लक्ष्मण को लखन भी कहते हैं। इसलिए इसे “लखनपुर” नाम से भी जाना जाता था।11वीं शताब्दी तक लखनपुर (या लक्ष्मणपुर) के नाम से यह शहर जाना जाता था। लखनऊ उस क्षेत्र में स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ प्राचीन कौशल राज्य का हिस्सा था।

वैदिक काल: लखनऊ शहर के पुराने भाग में एक ऊंचा ढूह है, जिसे लक्ष्मणटीला कहा जाता है। यहां पुरातात्विक खुदाई में वैदिक कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। कहते हैं कि लक्ष्मणटीला पर पहले लक्ष्मणजी का प्राचीन मंदिर था जिसे मुगल बादशाह औरंगजेब ने तुड़वाकर एक मसजिद बनवाई थी।

त्रेता युग में लखनऊ: लोककथाओ के अनुसार इस नगर का प्राचीन नाम ‘लक्ष्मणपुर’ या ‘लक्ष्मणवती’ था और इसकी स्थापना श्री रामचंद्र जी के अनुज लक्ष्मण ने की थी। जो बदलकर कालांतर में लखनऊ के नाम से जाना जाने लगा। श्री राम की राजधानी अयोध्या भी यहां से मात्र 80 मील दूरी पर स्थित है। नगर के पुराने भाग में एक ऊंचा ढूह है, जिसे आज भी ‘लक्ष्मण टीला’ कहा जाता है। यह प्राचीन कोसल राज्य का हिस्सा था। यह भगवान राम की विरासत थी, जिसे उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को समर्पित कर दिया था।

लखनावती से लखनऊ: कहा जाता है की १२वीं सदी के राजा लाखन की पत्नी के नाम पर इसका नाम “लखनावती” पड़ा।

बागों का शहर: गोमती नदी के तट पर स्थित लखनऊ को मुस्लिम काल में नवाबों का शहर कहा जाने लगा और वर्तमान में लखनऊ को “बागों का शहर” कहा जाता है।

लक्ष्मण टीला: पुराना लखनऊ लक्ष्मण टीले के पास बसा हुआ था। अब ‘लक्ष्मण टीला’ का नाम पूरी तरह मिटा दिया गया है। लखनऊ की संस्कृति के साथ यह जबरदस्ती की गई है। लखनऊ के पौराणिक इतिहास को नकार कर ‘नवाबी कल्चर’ में ढालने के लिए ऐसा किया गया है। लक्ष्मण टीले पर शेष गुफा थी जहां बड़ा मेला लगता था। खिलजी के वक्त यह गुफा ध्वस्त की गई और उसके बाद यह जगह टीले में तब्दील कर दी गई। औरंगजेब ने बाद में यहां एक मस्जिद बनवा दी जिसे टीले वाली मस्जिद के नाम से जाना जाने लगा।

मुग़ल स्थापत्य: लखनऊ का प्राचीन इतिहास अप्राप्य है। इसकी विशेष उन्नति का इतिहास मध्य काल के पश्चात् ही प्रारम्भ हुआ जान पड़ता है, क्योंकि हिन्दू काल में, अयोध्या की विशेष महत्ता के कारण लखनऊ प्राय: अज्ञात ही रहा। सर्वप्रथम, मुग़ल बादशाह अकबर के समय में चौक में स्थित ‘अकबरी दरवाज़े’ का निर्माण हुआ था। जहाँगीर और शाहजहाँ के जमाने में भी इमारतें बनीं, किंतु लखनऊ की वास्तविक उन्नति तो नवाबी काल में हुई।

‘बनारस की सुबह, अवध की शाम’ ‘अवध’ यानी लखनऊ: भारत में एक कहावत प्रसिद्ध है ‘बनारस की सुबह, अवध की शाम’. ‘अवध’ यानी लखनऊ, और लखनऊ एक ऐसा शहर जो अपनी तमीज, तहजीब एवं नफासत पसंदगी के लिए विश्व प्रसिद्ध है। एक ओर अपने ऐतिहासिक भवनों का गौरव लिए खड़ा है, तो वहीं दूसरी तरफ नवीन शिल्प से भी अलंकृत है।

लखनऊ शहर की स्थापना: लखनऊ को प्राचीन काल में लक्ष्मणपुर, लखनपुर और लखनावती आदि नामों  से जाना जाता था जो बाद में बदल कर लखनऊ हो गया। 18वीं सदी में जब इसे अवध की राजधानी के रूप में नवाबों के द्वारा चुना गया तब इसका पुनः नाम लखनऊ रखा गया। लखनऊ के वर्तमान स्वरूप की स्थापना नवाब आसफउद्दौला ने 1775 ई. में की थी। इसे पूर्व के गोल्डन सिटी, शिराज-ए-हिंद और भारत के कांस्टेंटिनोपल के नाम से भी जाना जाता है

लखनऊ जनपद की अर्थव्यवस्था: लखनऊ उत्तर प्रदेश के भारतीय राज्य की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है।यह ग्यारहवें सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर और 12 वीं सबसे अधिक आबादी वाला शहरी ढांचा है।लखनऊ को हमेशा एक बहुसांस्कृतिक शहर के रूप में जाना जाता है जो उत्तर भारतीय सांस्कृतिक और कलात्मक केंद्र और 18 वीं और 1 9वीं शताब्दी में नवाबों की शक्ति का केंद्र बना।यह शासन, प्रशासन, शिक्षा, वाणिज्य, एयरोस्पेस, वित्त, फार्मास्यूटिकल्स, प्रौद्योगिकी, डिजाइन, संस्कृति, पर्यटन, संगीत और कविता का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।

लखनऊ समुद्र तल से लगभग 123 मीटर (404 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। लखनऊ जिले में 2,528 वर्ग किलोमीटर (9 76 वर्ग मील) का क्षेत्र शामिल है।लखनऊ गोमती नदी के उत्तर-पश्चिमी तट पर स्थित है।हिंदी शहर की मुख्य भाषा है और उर्दू भी व्यापक रूप से बोली जाती है। लखनऊ भारत में शिया इस्लाम का केंद्र है जिसमें भारत में सबसे ज्यादा शिया मुस्लिम आबादी है।

लखनऊ, अवध की राजधानी: ऐतिहासिक रूप से, अवध की राजधानी दिल्ली सल्तनत द्वारा नियंत्रित थी, जो बाद में मुगल शासन के अधीन आई थी। यह अवध के नवाबों में स्थानांतरित किया गया था। 1856 में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने स्थानीय शासन को समाप्त कर दिया और बाकी का अवध के साथ शहर का पूर्ण नियंत्रण लिया और 1857 में इसे ब्रिटिश राज में स्थानांतरित किया। शेष भारत के साथ, लखनऊ 15 अगस्त 1 9 47 को ब्रिटेन से स्वतंत्र हो गए। यह भारत के 17 वें सबसे तेज़ी से बढ़ते शहर और दुनिया में 74 वां स्थान है।

आसफ़ुद्दौला के उत्तराधिकारी: आसफ़ुद्दौला के उत्तराधिकारी सआदत अली ख़ाँ (1798-1814 ई.) के शासन काल में ‘दिलकुशमहल’, ‘बेली गारद दरवाज़ा’ और ‘लाल बारादरी’ का निर्माण हुआ।

1720 से नवाबी परंपरा: मुहम्मदशाह के समय में दिल्ली का मुग़ल साम्राज्य बिखरने लगा था। 1720 ई. में अवध के सूबेदार सआदत खां ने लखनऊ में अपनी सल्तनत कायम कर ली और यहीं से शिया मुस्लिमों के नवाबों की परंपरा की शुरुआत मानी जाती है। इसके बाद लखनऊ में सफ़दरजंग, शुजाउद्दौला, ग़ाज़ीउद्दीन हैदर, नसीरुद्दीन हैदर, मुहम्मद अली शाह और लोकप्रिय नवाब वाजिद अली शाह ने शासन किया।

मुग़ल साम्राज्य: 1732 में मुग़ल साम्राज्य के सभी मुस्लिम राज्यों और निर्भरताओं में, अवध का नया शाही परिवार था जो पूर्वी फारस के खुरासन से सदात खान नामक एक फारसी साहसी से निकले थे। मुग़ल की सेवा में ज्यादातर ज्यादातर सैनिक थे और यदि सफल रहे तो वे अमीर पुरस्कार की आशा कर सकते थे। सदात खान इस समूह में सबसे सफल साबित हुए इसलिए 1732 में उन्हें अवध प्रांत के राज्यपाल बनाया गया था। उनका मूल शीर्षक नाजीम था, जिसका मतलब है गवर्नर, लेकिन जल्द ही उन्हें नवाब बनाया गया था।

1740 में लखनऊ: 1740 में, नवाब को वाजिर या विज़ीर कहा जाता था, जिसका अर्थ है मुख्यमंत्री। और उसके बाद उन्हें नवाब वजीर के नाम से जाना जाता था। व्यवहार में, सदात खान के बाद से, खिताब आनुवंशिक थे, हालांकि सिद्धांत रूप में वे मुगल सम्राट के उपहार में थे, जिनके लिए निष्ठा का भुगतान किया गया था। एक नगज, या टोकन श्रद्धांजलि, हर साल दिल्ली भेज दी जाती थी, और शाही परिवार के सदस्यों को महान सम्मान के साथ सौंपा गया था: उनमें से दो वास्तव में 1819 में लखनऊ में रहते थे, और उन्हें महान सौजन्य से व्यवहार किया गया।

प्लासी में ब्रिटिश सेना: 1757 में प्लासी में ब्रिटिश सेना की जीत और 1764 में बक्सर ने नवाब को पूरी तरह से हराया जब शांति बनायी गयी, तो अवध ने बहुत जमीन खो दी थी और नवाब वजीर को ब्रिटिश संसद में बहकाया गया क्योंकि सभी भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के मुख्य मूल स्थान को हटा दिया गया था।

फैजाबाद से लखनऊ नवाबों की राजधानी: नवाब आसफ़ुद्दौला (1795-1797 ई.) के समय में राजधानी फैजाबाद से लखनऊ लाई गई थी। आसफ़ुद्दौला ने लखनऊ में इमामबाड़ा, विशाल रूमी दरवाज़ा और आसफ़ी मसजिद नामक इमारतें बनवाईं। इनमें से अधिकांश इमारतें अकाल पीड़ितों को मज़दूरी देने के लिए बनवाई गई थीं। आसफ़ुद्दौला को लखनऊ निवासी “जिसे न दे मौला, उसे दे आसफ़ुद्दौला” कहकर याद करते हैं। आसफ़ुद्दौला के जमाने में ही अन्य कई प्रसिद्ध भवन, बाज़ार तथा दरवाज़े बने थे, जिनमें प्रमुख हैं- ‘दौलतखाना’, ‘रेंजीडैंसी’, ‘बिबियापुर कोठी’, ‘चैक बाज़ार’ आदि।

1850 में अवध: 1850 में अवध के अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह ने ब्रिटिश अधीनता स्वीकार कर ली। लखनऊ के नवाबों का शासन इस प्रकार समाप्त हुआ।

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लखनऊ का योगदान

अंग्रेज़ों का अधिकार: 1856 ई. में अंग्रेज़ों ने वाजिद अली शाह को गद्दी से उतार कर अवध की रियासत को समाप्ति कर दी और बिना युद्ध ही अधिग्रहण कर ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। 1857 ई. के भारत के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में लखनऊ की जनता ने रेजीडेंसी तथा अन्य इमारतों पर अधिकार कर लिया था, किन्तु शीघ्र ही पुनः राज्य सत्ता अंग्रेज़ों के हाथ में चली गई और स्वतन्त्रता युद्ध के सैनिकों को कठोर दंड दिया गया।

सर हेनरी लॉरेंस, रेजीडेंसी परिसर: मेरठ में घटनाओं के बाद बहुत जल्द, अवध (अवध के रूप में भी जाना जाता है, आधुनिक दिन उत्तर प्रदेश में), जो बमुश्किल एक साल पहले कब्जा कर लिया था की राज्य में विद्रोह भड़क उठी। लखनऊ में ब्रिटिश आयुक्त निवासी सर हेनरी लॉरेंस, रेजीडेंसी परिसर के अंदर अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए पर्याप्त समय था। कंपनी बलों वफादार सिपाही सहित कुछ 1700 पुरुषों, गिने। ‘विद्रोहियों के हमले असफल रहे थे और इसलिए वे परिसर में तोपखाने और बंदूक आग की बौछार शुरू कर दिया। घेराबंदी के 90 दिनों के बाद, कंपनी बलों की संख्या 300 वफादार सिपाहियों, 350 ब्रिटिश सैनिकों और 550 गैर – लड़ाकों के लिए कम हो गई थी।

लॉर्ड डलहौजी-हड़प नीति, राज्य अपहरण नीति: लॉर्ड डलहौजी ने अवध को अंग्रेजी साम्राज्य में विलय करने की योजना बनाई। 1848 ई. में उसने कर्नल स्लीमैन को लखनऊ में रेजीडेण्ट के रूप में भेजा। 1854 ई. में स्लीमैन के स्थान पर आउट्रम भारत आया और उसने भी अपने विवरण में कहा कि अवध का प्रशासन बहुत दूषित है तथा लोगों की दशा बहुत शोचनीय है। उसने अवध के नवाब वाजिदअली शाह पर अयोग्यता तथा दोषपूर्ण शासन करने का आरोप लगाया और एक सन्धि स्वीकार करने का प्रस्ताव रखा, जिसके अनुसार नवाब को रू 12 लाख वार्षिक पेंशन देकर अवध राज्य को अंग्रेजी साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। किन्तु नवाब ने इस सन्धि को स्वीकार नहीं किया। फलतः लॉर्ड डलहौजी ने एक सेना अवध भेजी और नवाब को गद्दी से उतारकर अवध पर अधिकार कर लिया।

सिकंदर बाग़ में विद्रोहियों के डेरा: लखनऊ में हुई सबसे भीषण लड़ाइयों में से एक नवंबर, 1857 में सिकंदर बाग़ में हुर्ह थी। सिकंदर बाग़ में विद्रोहियों ने डेरा डाल रखा था। यह बाग़ रेजिडेंसी में फ़ंसे हुए यूरोपियनों को बचाने निकले कमांडर कोलिन कैंपबेल के रास्ते में पड़ता था। यहां एक ख़ूनी लड़ाई हुई जिसमें हज़ारों भारतीय सैनिक शहीद हुए।

हज़रत महल ने चिनहट की लड़ाई : हज़रत महल ने चिनहट की लड़ाई में विद्रोही सेना की शानदार जीत के बाद 5 जून, 1857 को अपने 11 वर्षीय बेटे बिरजिस क़द्र को मुग़ल सिंहासन के अधीन अवध का ताज पहनाया। अंग्रेज़ों को लखनऊ रेजिडेंसी में शरण लेने के लिए विवश होना पड़ा। यहां एक के बाद श्रृंखला में कई घटनाएं हुईं, जो आज लखनऊ की घेराबंदी के तौर पर प्रसिद्ध हैं। बिरजिस क़द्र के राज-प्रतिनिधि (रीजेंट) के तौर पर हज़रत महल का फ़रमान पूरे अवध में चलता था।

ऊदा देवी, एक अच्छी निशानेबाज़ और वीरांगना: एक कथा के मुताबिक़ अंग्रेज़ों को आवाज़ से यह पता चला कि कोई पेड़ पर चढ़कर धड़ाधड़ गोलियां दाग रहा है। जब उन्होंने पेड़ को काट कर गिराया तब जाकर उन्हें पता चला कि फायरिंग करने वाला कोई आदमी नहीं बल्कि एक औरत है, जिसकी पहचान बाद में ऊदा देवी के तौर पर की गयी। ऊदा देवी पासी समुदाय से ताल्लुक रखती थीं। उनकी मूर्ति आज लखनऊ के सिकंदर बाग़ के बाहर स्थित चौक की शोभा बढ़ा रही है।

ब्रिटिश अधीनता: अंग्रेज़ों ने समझौते के तीन प्रस्ताव भेजे। यहां तक कि यह पेशकश भी रखी कि वे ब्रिटिश अधीनता में उनके पति का राजपाट लौटा देंगे। लेकिन बेगम इसके लिए राजी नहीं हुई। वह एक स्वतंत्र अधिकार से कम कुछ नहीं चाहती थी। उन्हें या तो सबकुछ चाहिए था, या कुछ भी नहीं। भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की सबसे लंबी और सबसे प्रचंड लड़ाई लखनऊ में लड़ी गई।

1899 में पहला अधिवेशन : लखनऊ में कांग्रेस का पहला अधिवेशन 1899 में हुआ था। इससे पहले कलकत्ता, नागपुर व मद्रास में कांग्रेस का अधिवेशन हो चुका था। इन अधिवेशनों में अध्यक्ष, प्रधानमंत्री और उसकी विभिन्न समितियों के सदस्य चुने जाते थे। पहले लखनऊ अधिवेशन में संगठन समिति के सदस्य के तौर पर बाबू गंगा प्रसाद वर्मा, पंडित विष्णु नारायण, हाफिज अब्दुर्रहमान, पंडित मदन मोहन मालवीय, ए नंदी आदि को चुना गया। काग्रेस के 15वें अधिवेशन की अध्यक्षता रमेश चंद्र दत्ता ने की थी। अधिवेशन में 789 प्रतिनिधि शामिल हुए थे।

मुस्लिम लीग की स्थापना: मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में हुई। शुरु-शुरू में जिन्ना अखिल भारतीय मुस्लिम लीग में शामिल होने से बचते रहे, लेकिन बाद में उन्होंने अल्पसंख्यक मुसलमानों को नेतृत्व देने का फैसला कर लिया। 1913 में जिन्ना मुस्लिम लीग में शामिल हो गये और 1916 के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता की। 1916 के लखनऊ समझौते के कर्ताधर्ता जिन्ना ही थे। यह समझौता लीग और कांग्रेस के बीच हुआ था। कांग्रेस और मुस्लिम लीग का यह साझा मंच स्वशासन और ब्रिटिश शोषकों के विरुद्ध संघर्ष का मंच बन गया।

गाँधी जी का लखनऊ का दौरा: महात्मा गांधी ने ‘नील के दाग’ शीर्षक से लिखे अपने लेख में इसका उल्लेख भी किया था कि गांधी जी 26 दिसंबर 1916 को पहली बार काग्रेस के अधिवेशन में लखनऊ आए थे। अधिवेशन में मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू और सैयद महमूद ने लोगों को संबोधित किया था।

लखनऊ समझौता: दिसंबर 1916 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा किया गया समझौता है, जो 29 दिसम्बर 1916 को लखनऊ अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस द्वारा और 31 दिसम्बर 1916 को अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा पारित किया गया।भारतीय राजनीति में जिन्ना का उदय 1916 में कांग्रेस के एक नेता के रूप में हुआ था, जिन्होने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर देते हुए मुस्लिम लीग के साथ लखनऊ समझौता करवाया था।

अगर हिन्दू-मुस्लिम एकता वाले ऐतिहासिक लखनऊ समझौते को संविधान में मान लिया गया होता तो शायद न देश का बंटवारा होता और न ही जिन्ना की कोई गलत तस्वीर हमारे मन में होती।

1916 से 1939: वर्ष 1916 से 1939 के बीच कई बार अपने लखनऊ प्रवास के दौरान गांधी जी ने न सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ रणनीति बनाई थी बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दे गए थे। वर्ष 1926 में जवाहर लाल नेहरू, पंडित मदन मोहन मालवीय, सरोजनी नायडू ने स्वतंत्रता सेनानियों के साथ बैठक कर रणनीति बनाई थी।

लखनऊ [मुहम्मद हैदर/अजय श्रीवास्तव]: 25 दिसंबर 1916 से पहले मोहनदास करमचंद गांधी को हर कोई बैरिस्टर कहकर संबोधित करता था, लेकिन राजधानी लखनऊ में हुए काग्रेस के 31वें अधिवेशन में गांधी जी के बैरिस्टर से महात्मा बनने की नींव पड़ी थी। यह अधिवेशन 26 से 30 दिसंबर के बीच अंबिका चरण मजूमदार की अध्यक्षता में हुआ था। अधिवेशन में चम्पारण के लोगों की बापू से पहली मुलाकात हुई थी। जिसके बाद वह किसानों को उनका अधिकार दिलाने चम्पारण गए। इसी दौरान गांधी जी ने देश के दीनहीन लोगों को देखा जिनके पास पहनने के लिए वस्त्र तक नहीं थे। इसी के बाद उन्होंने बैरिस्टर की पोशाक त्यागकर एक धोती पहनने का संकल्प लिया और उनके बैरिस्टर से महात्मा बनने की नींव पड़ी।

लखनऊ में आयोजित काग्रेस अधिवेशन: 26 से 30 दिसंबर 1916 तक लखनऊ में आयोजित काग्रेस अधिवेशन में गांधी जी ने भाग लिया था। तब यहां गांधी जी ने श्रमिकों की भर्ती कर विदेश ले जाने की प्रथा को बंद करने का प्रस्ताव रखा था। गांधी जी की जवाहर लाल नेहरू से पहली बार मुलाकात यहां अधिवेशन में ही हुई थी। 31 दिसंबर 1931 को मुस्लिम लीग सम्मेलन में हिस्सा लिया और आजादी की लड़ाई पर मंथन किया था। स्वतंत्रता आदोलन के लिए लोगों को जागरुक करने के लिए गांधी जी 11 मार्च 1919, 15 अक्टूबर 1920, 26 फरवरी 1921, आठ अगस्त 1921, 17 अक्टूबर 1925, 27 अक्टूबर 1929 को भी लखनऊ आए।

नगर पालिका भवन में भी जुटे थे गांधी-नेहरू: अक्स धुंधले पड़ गए, लेकिन आजादी की लड़ाई के अतीत को आज भी जिंदा रखे हैं। शहर में जिधर सिर घुमाओ, ऐसे निशान और घाव मिल जाएंगे जो अंग्रेजी हुकुमत से लड़ाई के गवाह बने हुए हैं। लालबाग के त्रिलोक नाथ रोड पर नगर निगम मुख्यालय (तब नगर पालिका) में भी आजादी के लिए रणनीति बनी थी। 17 अक्टूबर 1925 को लखनऊ के तीन घटे के प्रवास पर गांधी जी ने नगर पालिका का अभिनंदन पत्र स्वीकार किया था और त्रिलोकनाथ हाल (जहा अब नगर निगम का सदन होता है) में सार्वजनिक सभा में भाषण दिया था। गांधी जी की याद को आज भी नगर निगम मुख्यालय के बाहर लगा शिलापट याद दिला देता है।

1936 में गांधी जी: वर्ष 1936 में गांधी जी 28 मार्च से 12 अप्रैल सबसे अधिक समय रहे और तमाम आयोजनों में शामिल होकर लोगों को अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने के लिए जागरुक किया था। 26 दिसंबर 1916 को चारबाग स्टेशन पर आयोजित मीटिंग में नेहरू संग संबोधित किया था। मार्च 1936 में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए गांधी दूसरी बार फिर लखनऊ आए थे।

भारत छोड़ो आंदोलन: महात्मा गांधी के आह्वान पर 9 अगस्त, 1942 को पूरे देश में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा हुई। इसे अगस्त क्रांति दिवस के नाम से भी जाना जाता है। लखनऊ में भी आंदोलन की जबरदस्त तैयारी थी। अंग्रेजों को भनक लगी तो उन्होेंने लखनऊ में धारा 144 लगाते हुए अमीनाबाद का झंडे वाला पार्क और घंटाघर पार्क की सुरक्षा बलों से घेराबंदी करा दी ताकि कोई आंदोलनकारी पार्कों में प्रवेश न कर सके। सुबह होते ही पुलिस ने कांग्रेस के नगर, जिला और प्रांतीय कार्यालयों पर छापेमारी शुरू कर दी। लखनऊ के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट मिस्टर ल्यूइस लॉइड खुद सड़कों पर घूम रहे थे।

यूनाइटेड प्रोविन्स या ‘यूपी’: 1902 में ‘नार्थ वेस्ट प्रोविन्स’ का नाम बदल कर ‘यूनाइटिड प्रोविन्स ऑफ आगरा एण्ड अवध‘ कर दिया गया जो साधारण बोलचाल की भाषा में इसे ‘यूनाइटेड प्रोविन्स’ या ‘यूपी’ कहा गया। 1920 में प्रदेश की राजधानी को इलाहाबाद से बदल कर लखनऊ कर दिया गया। स्वतंत्रता के बाद 12 जनवरी सन् 1950 में इसका नाम बदलकर उत्तर प्रदेश रख दिया गया और लखनऊ इसकी राजधानी बना।

हर नवाब की अपनी पहचान: सआदत अली खां के जमाने में दिलकुशमहल, बेली गारद दरवाज़ा और लाल बारादरी का निर्माण हुआ। ग़ाज़ीउद्दीन हैदर ने मोतीमहल, मुबारक मंजिल, सआदत अली और खुर्शीदज़ादी के मक़बरे, नसीरुद्दीन हैदर के जमाने में प्रसिद्ध छतर मंजिल और शाहनजफ़ इमामबाड़ा, मुहम्मद अलीशाह ने हुसैनाबाद का इमामबाड़ा, बड़ी जामा मस्जिद और हुसैनाबाद की बारादरी बनवाई और अंतिम नवाब वाजिद अली शाह ने लखनऊ के विशाल एवं भव्य कैसर बाग़ का निर्माण करवाया।

“नवाबों का शहर” “तहजीब का शहर”: लखनऊ को ‘नवाबों के शहर’ के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस शहर का इतिहास इस शहर को सबसे अलग बनाता है। लखनऊ का नाम आते ही अदब और तहजीब की एक रवायत सी महसूस होने लगती है। नवाबी और आधुनिक दौर की कला व संस्कृति का अद्भुत नमूना यहां आज भी देखने को मिलता है। यहाँ के शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। शेख इमामी बख्शेद नसीम ने कहा था:

गुल से रंगीतर है खारे लखनऊ,
              नशे से बेहतर है खुमारे लखनऊ।
फिर रहे हैं गुल हजारे लखनऊ,
                  है चमन हर रह-गुजारे लखनऊ।।  

दर्शनीय स्थल:

भूल भुलय्याँ

घंटा घर

शाही बावली

रेजीडेंसी

रूमी दरवाज़ा

पिक्चर गेलरी

बनारसी बाग

जामी मस्जिद

हुसैनाबाद इमामबाड़ा

सआदत अली का मकबरा

लखनऊ की स्थिति
क्षेत्रफल2,528 वर्ग किमीमंडललखनऊ
पूर्व में बाराबंकीपश्चिम मेंहरदोई एवं उन्नाव
उत्तर मेंसीतापुरदक्षिण मेंउन्नाव एवं रायबरेली
राष्ट्रीय राजमार्ग NH-24B, NH-24A, NH-056, NH-028, NH-024
नदियाँगोमती नदीपरियोजनाएँ शारदा नहर
विधानसभा क्षेत्र 8 (मोहनलालगंज, लखनऊ मध्य, लखनऊ पूर्व, लखनऊ उत्‍तर, लखनऊ पश्‍चिम, सरोजनी नगर, बक्शी का तालाब, मलिहाबाद)
लोकसभा सीट 1 (लखनऊ)
तहसील 5 (सदर, सरोजनी नगर, बख्शी का तालाब, मलिहाबाद, मोहन लाल गंज)
विकासखंड (ब्लाक)8 (मॉल, मलिहाबाद, चिनहट, बक्शी का तालाब, काकोरी, गोसाईगंज, सरोजनी नगर, मोहनलाल गंज)
कुल ग्राम 961 कुल ग्राम पंचायत570
नगर निगम 1 (लखनऊ)नगर पंचायत 8 (इटौंजा, काकोरी, महोना, गोसाईगंज, अमेठी, मलिहाबाद, नगराम, बक्शी का तालाब)
लखनऊ के संस्थान व प्रमुख स्थान
धार्मिक स्थान: हनुमान सेतु मंदिर, मनकामेश्वर मंदिर, अलीगंज का हनुमान मंदिर, भूतनाथ मंदिर, चंद्रिका देवी मंदिर, नैमिषारण्य तीर्थ और रामकृष्ण मठ, लक्ष्मण टीला मस्जिद, इमामबाड़ा मस्जिद, ईदगाह असेंबली ऑफ विलीवर्स चर्चउद्योग: एयरोनॉटिक्स आधारित, ऑटोमोबाइल उद्योग, वस्त्र आधारित उद्योग, प्लास्टिक आधारित उद्योग, स्टील/स्टील फर्नीचर आधारित
प्रसिद्ध स्थल: छोटा इमामबाड़ा, भूल भुलय्याँ, रूमी दरवाज़ा, घंटा घर, रेज़िडेंस
नोट: लखनऊ को लोकप्रिय रूप से नवाबों के शहर के रूप में जाना जाता है। इसे पूर्व के गोल्डन सिटी, शिराज-ए-हिंद और भारत के कांस्टेंटिनोपल के नाम से भी जाना जाता है।

अयोध्या के प्राचीन महानगर घागरा के किनारे पर स्थित था, जो कि चुनने में गंगा के रूप में व्यापक रूप से एक नदी और इसके विशाल खंडहर अभी भी देखे जा सकते हैं।

अफगानों द्वारा कणोज की विजय के बाद 12 वीं शताब्दी के अंत में, अवध ने ग़ज़नी के सुल्तान को सौंप दिया, और इसलिए दिल्ली के साम्राज्य का हिस्सा बन गया।
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लखनऊ के सांसद श्री अटल बिहारी वाजपेयी दो बार, मई 16, 1996 से June 1, 1996 तक और फिर मार्च 19, 1998 से मई 22, 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे हैं।

लखनऊ में तालाबों का भी अपना इतिहास रहा है। हालांकि ज्यादातर तालाब अपना अस्तित्व खो चुके हैं लेकिन जो तालाब कमोबेस मौजूद हैं उनमें नवाबी दौर की वही ठसक और रौनक देखने को मिलती है।

राजा टिकैटतराय का तालाब: इस आलीशान तालाब को बनवाने वाले राजा टिकैतराय नवाब असाफुद्दौला के दीवान थे। चारों तरफ से आसफी लखौड़ियों की गहरी सीढ़ियों से बंधा हुआ है ये पक्का वर्गाकार तालाब बड़ा ही भव्य नजारा पेश करता है।ऐसा कहा जाता है कि नवाबी दौर में इस मेले में शामिल होने के लिए राजा पालकियों और रथों से आते थे, जिसकी रौनक देखते बनती थी।यहां एक तरफ महिलाओं के नहाने के लिए पर्देदार घाट बना हुआ है। इसी तालाब के किनारे लखनऊ में होने वाला शीतला अष्टमी का मशहूर मेला लगता है जिसे ‘आठों का मेला’ कहते हैं।

शीशमहल का तालाब: दौलतखाना इलाके में स्थित इस तालाब का नवाब आसफुद्दौला के ‘शीशमहल’ को गर्मियों में ठंडा रखने के लिए बनवाया गया था। इस तालाब के साथ की दीवारों में चरागखाने बने हुए है, जिनमें रात को रोशनी और सजावट की जाती थी। यह तालाब लगभग 200 साल पुराना है और अपने स्वच्छ मीठे पानी के लिए मशहूर है। यह आज भी मौजूद है।

सरई गुदौली का तालाब: लखनऊ से लगभग 30 कि.मी. दूर गोसाईगंज से आगे मोहनलालगंज रोड पर शारदा सहायक परियोजना के निकट एक विशाल सूरज कुंड बना हुआ है। यहां कार्तिक के महीने में पूर्णिमा को मेला लगता है। इसे राजा पूरन सिंह ने बनवाया था। वह सरई गुदौली गांव के थे और बादशाह नसीरूद्दीन हैदर के सेनापति थे।

बख्शी का तालाब: बादशाह अमजद अली शाह की फौज के इंतजामकार कन्नौज के कायस्थ राजा त्रिपुर चंद्र बख्शी थे। एक बार नवाब साहब ने फौज के लिए कुछ हाथी खरीदने के लिए नेपाल जाने का कहा।राजा बख्शी ने नेपाल यात्रा में खैराबाद की तरफ जाते हुए पहला पड़ाव इसी स्थान पर किया जहां पर आज यह तालाब है।

हुसैनाबाद का तालाब: इसे अवध के तीसरे बादशाह मुहम्मद अली शाह ने बनवाया। जिस साल बारादरी का निर्माण हुआ उसी साल इस खूबसूरत तालाब का निर्माण भी पूरा हुआ। इस खूबसूरत तालाब के किनारे दो हमामखाने भी बने हुए हैं, जिनमें उस जमाने में गर्म और ठंडे पानी आने का पूरा इंतजाम था।इसकी जगह की खूबसूरती के महत्व को समझते हुए सन् 1882 में अंग्रेज शासकों ने हुसैनाबाद का मशहूर घंटाघर बनवाया था।

चांदगंज का तालाब: बादशाह नसीरुद्दीन हैदर के समय में लखनऊ में ‘चांदगंज खुर्द’ और ‘चांदगंज कलां’ नाम के दो मुहल्ले गोमती के उस पर बसे हुए थे। चांद बेगम के नाम से मशहूर इस मुहल्ले में एक ऊंचे स्तंभ पर बड़ा-सा चांदी का चांद लगा था।शाहे अवध के दरबार का मुलाजिम गंगा नाम का एक कहार बहुत जल्दी तरक्की करके महल का दरोगा बन गया था और उसने ही यह तालाब बनवाया।

घुड़घुड़ी का तालाब: लखनऊ से मोहान जाने वाली सड़क पर 12 किमी दूर गुरुगढ़ी का तालाब है जिसे लोग घुड़घुड़ी का तालाब कहते हैं। इसे मंडी सआदतगंज के एक हिंदू गुरुदयाल ने 19वीं सदी में बनवाया था। इसके किनारे दुर्गा मंदिर और हनुमान मंदिर है। यहां कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है जिसमें अच्छी-खासी भीड़ उमड़ती है।

जानिये क्यों खास है लखनऊ, जानिये दुनिया में है इसकी अलग पहचान

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की मायनों में खास है। इस शहर को अदब और तहजीब के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। यही नहीं लखनऊ अपने स्वाद के लिए खासतौर पर जाना जाता है।वेज और नॉनवेज दोनों ही व्यंजनों के लिए लखनऊ को देश के बेहतरीन जगहों में से एक माना जाता है। कहते हैं लखनऊ के लोगों में अजब सा अंदाज होता है और यहां के लोग बड़ी ही आसानी से लोगों के बीच में अपनी अलग पहचान बनाते और छाप छोड़ते हैं।

  1. लखनऊ दुनिया की सबसे तेज विकसित होने वाले शहरों की सूची में 74 वें स्थान पर है।
  2. लखनऊ में देश के किसी भी राज्य की तुला में सबसे ज्यादा शिया मुस्लिम रहते हैं।
  3. लखनऊ में सबसे ज्यादा 9000 सीसीटीवी कैमरा लगे हैं जोकि देश के किसी भी शहर से ज्यादा हैं।
  4.  चारबाग भारत का सबसे ज्यादा व्यस्त और खूबसूरत रेलवे स्टेशन है।
  5.  चारबाग रेलवे स्टेशन उपर से देखने पर शतरंज का बोर्ड लगता है जबकि इसके गुंबद शतरंग के गोटियां लगती हैं।
  6. रूमी दरवाजे को रूमी दरवाजा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसे रोम के शिल्पकार ने बनाया था।
  7. 1857 की क्रांति के समय लखनऊ अहम स्थान था, यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ पहली आजादी की लडाई छेड़ी गयी थी।
  8. यहीं से क्रांति शुरु होकर कानपुर और बंगाल की ओर बढ़ी थी।
  9. 1857 में अंग्रेजों ने लखनऊ में सबसे बड़ा कैटोंनमेंट बनाया था।
  10. बिना पिलर के बड़ा इमामबाडा का हॉल एशिया का सबसे बड़ा हॉल है। इसे 22000 मजदूरों ने मिलकर बनाया था।
  11. लखनऊ विश्वविद्यालय यूरोपीय ऑर्किटेक्स से प्रेरित है।
  12. दिलकुशा कोठी अंग्रेजी बारूख आॉर्किटेक्ट का उदाहरण है। इसे 1800 में गर्मियों में अंग्रेजों के रहने के लिए बनाया गया था।
  13. बडा इमामबाड़ा और छोटा इमामबाड़ा मुगल और तुर्की ऑर्कीटेक्ट का मिला जुला रूप है।
  14. ला मार्ट स्कूल को इंडो-यूरोप स्टाइल में बनाया गया है।
  15. लखनऊ में चिकनकारी 400 साल पुरानी विधा है और चिकन के लिए लखनऊ पूरी दुनिया में जाना जाता है।
  16. नवाब आसफुद्दौला के काल को शहर का स्वर्ण काल कहा जाता है।
  17. लखनऊ चिड़ियाघर को बनारसी बाग कहा जाता था यह देश का सबसे पुराना चिड़ियाघर है, इसे 1921 में स्थापित किया गया था।
  18. साइकिल चलाने के लिहाज से लखनऊ उत्तर प्रदेश का सबसे उत्तम शहर है।
  19. 2015 में कराये गये आईएआऱबी और एलजी कॉर्पोरेशन के सर्वे में लखनऊ को देश का सबसे खुशहाल शहर बताया गया है।

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