बदायूं का इतिहास History of Budaun in Hindi

बदायूं का इतिहास: बदायूं प्राचीन काल में कौशल साम्राज्य का अभिन्न अंग था। भारतवर्ष अपनी विविधताओं के साथ अपना गौरवशाली इतिहास को समेटे हुये है, ऐतिहासिक दृष्टि से जनपद बदायूं का अतीत अत्यंत गौरवशाली और महिमामंडित रहा है। पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, तथा भौगोलिक दृष्टि से बदायूं का अपना विशिष्ट स्थान है। हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिक सदभाव, आध्यात्मिक, वैदिक, पौराणिक, शिक्षा, संस्कृति, संगीत, कला, सुन्दर भवन, धार्मिक, मंदिर, मस्जिद, ऐतिहासिक दुर्ग, गौरवशाली सांस्कृतिक कला की प्राचीन धरोहर को आदि काल से अब तक अपने आप में समेटे हुए बदायूं का विशेष इतिहास रहा है। बदायूं के उत्पत्ति का इतिहास निम्न प्रकार से है। इतिहास में बदायूं की आज तक की जानकारी।

बदायूं उत्तर प्रदेश: बदायूं भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बरेली मंडल का एक प्रमुख शहर और जिला है। 1838 में यह ज़िला मुख्यालय बना और एक लोकसभा निर्वाचनक्षेत्र भी है। यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के केंद्र में गंगा नदी के पास स्थित है। बदायूं शहर सुल्तान इल्तुतमिश शासन के दौरान 1210 ईसवी से 1214 ईसवीं तक चार साल के लिए दिल्ली सल्तनत की राजधानी राजधानी भी रहा है। वर्तमान मे बदायूँ एक व्यापारिक केंद्र है, यह ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण शहर सूफी संतों की भूमि भी रहा है। यह रोहिलखंड का दिल है। जो कि क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से काफी विस्तृत है। बदायूं को सूफी संतों, वलियों व पीरों की धरती भी कहा जाता है। वहीं अजमेर शरीफ़ जाने वाला हर श्रृद्धालु अपनी यात्रा के दौरान पहले बदायूं में नमाज़ पढ़ता है, उसके बाद ही दरगाह की ओर प्रस्थान करता है।

बदायूं का सम्पूर्ण इतिहास HISTORY OF BUDAUN IN HINDI

बदायूँ का प्राचीन नाम: 11वीं शताब्दी के एक अभिलेख में, जो बदायूँ से प्राप्त हुआ है, इस नगर का प्राचीन नाम वोदामयूता कहा गया है। इस लेख से ज्ञात होता है कि उस समय बदायूँ में पांचाल देश की राजधानी थी।

बदायूं का पुराना नाम व उपनाम: बदायूं का पुराना नाम व उपनाम क निजामुद्दीन औलिया नगर, पूर्व नाम वोदामयूता, पांचाल नगर आदि था।

बदायूँ जिला को किसने बसाया था: इतिहासकारो के अनुसार अहिच्छत्रा नगरी, जो अति प्राचीन काल से उत्तर पांचाल की राजधानी थी, इस समय तक अपना पूर्व गौरव गँवा बैठी थी। जनश्रुतिओ के अनुसार बदायूँ को अहीर सरदार राजा बुद्ध ने 10वीं शताब्दी में बसाया था। कुछ लोगों का यह मत है कि बदायूँ की नींव अजयपाल ने 1175 ई. में डाली थी। राजा लखनपाल को भी नगर के बसाने का श्रेय दिया जाता है।

बदायूँ का नामकरण: राजा महीपाल के मंत्री सूर्यध्वज ने इस नगर को वेदों की शिक्षा का केंद्र बताया। कई जगह बदायूँ के अस्तित्व को वैदिक कालों से बताया गया है कई लोगो के अनुसार यह नगर राजा बुद्ध के द्वारा बसाया गया जिसके कारण इसका शुरूआती नाम बुद्ध मऊ भी रहा। वेदों की शिक्षा का केंद्र होने के कारण यह जगह वेदा मऊ भी कहलायी। जिसका प्रमाण आज भी बदायूं में सूरजकुंड के रूप में स्थित है। यह कुंड प्राचीनकाल का वह गुरुकुल है जहाँ वेदों की शिक्षा दी जाती थी। कई तथ्य यह भी हैं की वेदा मऊ का नाम बदलकर बदाऊ राजा महिपाल के द्वारा किया गया जिसने आज के समय में बदायूँ का रूप ले लिया लेकिन कहीं भी इसका कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। कुछ इतिहास कारों के अनुसार इस जगह का नाम एक समय पर वेदामूथ भी रहा।

बदायूँ का नाम बदायूँ कैसे पड़ा: प्रो गोटी जॉन के अनुसार लखनऊ संग्रहालय में पत्थर की लिपियों पर आधारित एक प्राचीन शिलालेख में बदायूँ शहर का नाम वोडामायूता रखा गया था। बाद में इस क्षेत्र को पांचाल कहा जाने लगा। पत्थर की लिपियों पर लिखी पंक्तियों के अनुसार शहर के पास एक गाँव भदौनलाक था। मुस्लिम इतिहासकार रोज़ खान लोधी के अनुसार अशोक द ग्रेट ने एक बौद्ध विहार और किले का निर्माण किया उसने इसका नाम बुद्धमऊ (बुधौन किला) रखा। जॉर्ज स्मिथ के अनुसार, बदायूँ का नाम अहीर राजकुमार बुध के नाम पर पड़ा था। बुद्ध के उत्तराधिकारी ने 11वीं शताब्दी तक बदायूं पर शासन किया।

जनपद बदायूं की स्थापना: बदायूं की स्थापना लगभग 905 ईस्वी में हुई थी, और एक शिलालेख, जो शायद 12 वीं शताब्दी का था। बदायूँ में वोडामायुता (बदायूँ शहर का प्राचीन नाम) कहे जाने वाले बारह राठौर राजाओं की सूची देता है। गज़नाविद सुल्तान के पुत्र महमूद द्वारा रणश्रुत प्रमुख को निकाल कर कन्नौज पर 1085 ईसा के बाद विजय प्राप्त की गई। यह राष्ट्र प्रमुख अपनी राजधानी को वोडामायुता में ले जाता है, जहाँ उन्होंने कुतुब-उद-दीन ऐबक द्वारा जीत हासिल करने तक शासन किया था।

बदायूं की स्थिति: बदायूं नई दिल्ली से 229 किमी दूर है। बदायूं भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में उत्तरी भाग में स्थित है, ये जिला उत्तर में मोरादाबाद जिला से, दक्षिण में कासगंज जिला से, पूर्व में शाहजहांपुर जिला से और पश्चिम में बुलंदशहर जिला से घिरा हुआ है, बदायूं समुद्रतल से 964 मीटर की ऊंचाई पर है और इसके अक्षांस और देशांतर 28 डिग्री 5 मिनट उत्तर से 79 डिग्री 12 मिनट पूर्व तक है। बर्तमान में बदायूँ जिला, रूहेलखण्ड में आता है, रूहेलखण्ड में बरेली , बदायूँ, पीलीभीत, शाहजहाँपुर, मुरादाबाद, सम्भल, अमरोहा, रामपुर, बिजनौर जिले आते है।

सालवहान (उपनाम समुद्रपाल) का दिल्ली की गद्दी पर कब्जा: इतिहासकारो के अनुसार राजा विक्रमजीत को मार कर जब सालवहान ने दिल्ली के सिंहासन पर बैठा तब उसने बदायूँ नगर के शासन की व्यवस्था का भार अपने पुत्र चन्द्रपाल को सौंप दिया। जिससे जुड़े शिलालेख आज भी लखनऊ संग्राहलय में मौजूद है। इसके अनुसार राजा सालवाहन के 11 पाल वंश उत्तराधिकारी हुए। जिन्होंने बदायूं पर शासन किया था। ये शासक राष्ट्रकूट (राठौर) जाति के थे। इनका सम्बन्ध कन्नौज के राठौर वंशी राजाओं से था। इन शासकों का वंश किस प्रकार रहा है-
चंद्रपाल
विग्रह पाल देव
भुवन पाल
गोपाल देव
त्रिभुवन पाल
मदनपाल पाल
देव पाल
सूर्यपाल
अमृतपाल
लखनपाल

कम्पिल नरेष हरिन्द्रपाल का बदायूँ पर शासन: सम्वत् 805 वि0 में कम्पिल नरेष हरिन्द्रपाल ने तोमरो कोपराजित कर बदायूँ को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। इसके पौत्र राजा हरपाल ने सन् 965वि0 में अपने अधिकार क्षेत्र को दो भागों में विभाजित कर दिया। एक क्षेत्र की राजधानी, कन्नौज को बनाया गया, जिसका शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र देवचन्द्र को सौंप दिया। दूसरे क्षेत्र की राजधानी ‘‘अहिक्षेत्र’’ को बनाया,जिसका शासन उसके कनिष्ठ पुत्र शिवपाल ने संभाला।

चन्द्रपाल के शासनकाल में बदायूँ: संवत् 1037 में इस वंश के राजा अजयपाल ने बदायूँ को अपनी राजधानी घोषित किया। इसके पुत्र चन्द्रपाल को महमूद गजनवी की सेना का मुकाबला करना पड़ा था। चन्द्रपाल 1084 ई० में बदायूँ शासक था। बाद में इसने महमूद गजनवी से सन्धि कर ली।1028 ई0 में महमूद गजनवी का भान्जा सैय्यद सालार मसऊद ग़ाज़ी ने रूहेलखण्ड को अपना आक्रमण केन्द्र बनाया। बदायूँ में चन्द्रपाल को उससे युद्ध करना पड़ा। चन्द्रपाल की मृत्यु इसी युद्ध में हुई।

जयपाल के शासनकाल में बदायूँ: कन्नौज के राजा के पुत्र जयदेव को बदायूँ का राजा घोषित किया। जो बाद में जयपाल के नाम से जाना गया। सन् 1234 विक्रमी में जयपाल का पुत्र महीपाल (द्वितीय) बदायूँ का शासक मनोनीत किया गया। द्वितीय महीपाल की रानी चन्द्रवती थी जो महोवा के राजा परमाल की पुत्री थीं। उसके सौंदर्य और विदुषी होने की कहानियाँ आज भी सुनी जाती हैं। कल्यान राय ने ‘आतहारक’ में इसकी विस्तृत चर्चा है। महीपाल ने रानी चन्द्रावती के नाम पर बदायूँ के उत्तर में एक चन्द्र सरोवर (पक्का ताल) नामक तालाब बनवाया। जिसे आज चन्द्रोसर के नाम से जाना जाता है। महीपाल द्वितीय के बाद उसका पुत्र धर्मपाल बदायूँ के सिंहासन पर बैठा। उसकी नौ सौ रानियाँ थीं। सुरा सुन्दरी में निमग्न होने के कारण वह नितान्त अक्षम शासक सिद्ध हुआ।

बदायूं पर राजा महिपाल के शासनकाल का समय: भद्रास्वामी और रूद्र ने सर्वसाधारण सहमति से कन्नौज के राजा बेनीपाल के पुत्र महीपाल को 1200 साल पहले राजा बदायूँ का शासक मनोनीत किया। अपने कुशल नेतृत्व के कारण वह जन-जन का प्रशंसा-पात्र बन गया। उस समय सती प्रथा का दौर चला रहा था। शहर के बाहर माझिया गांव में एक सूर्याकुंड है जो आज भी दिखता है। इसमें नहाने के बाद महिलायें सती होती थी। जिनकी मठिया आज भी जर्जर हालात में है। इस कुंड के पास भगवान शंकर का मंदिर है। यह पूरी जमीन भगवान शंकर के नाम है। जब महीपाल अपनी शक्ति और चातुर्य से इन्द्रप्रस्थ का शासक बन गया तब उसने शासक का भार अनंगपाल तोमर को सौंप दिया। जो महीपाल के बाद 788 वि0 में इन्द्रप्रस्थका राजा हुआ। इस प्रकार लगभग 118 वर्ष तक तोमर वंषीय शासकीय ने बदायूँ पर शासन किया।

मुस्लिमकाल बदायूं पर कुतुब-उद-दीन ऐबक द्वारा कब्जा: ताज उल मासिर के लेखक ने बदायूँ पर कुतुबुद्दीन ऐबक के आक्रमण का वर्णन करते हुए बदायूं को हिन्द के प्रमुख नगरों में माना है। बदायूं में 1196 में कुतुब-उद-दीन ऐबक द्वारा कब्जा कर लिया गया था, जिसके बाद यह दिल्ली साम्राज्य के उत्तरी सीमा पर एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान बन गया।

अकबर के शासनकाल में बदायूँ: अकबर के शासन काल में (1556 ई0) बदायूँ, दिल्ली शासन के अधीन कर लिया। अकबर ने बदायूँ को फ़ौजी जागीर के रूप में कासिम अली खाँ को दे दिया। 1605 ई0 में अकबर की मृत्यु के बाद जहाँगीर शासन काल में फरीद खाँ को बदायूँ का गर्वनर नियुक्त किया गया। 1628 ई0 में बदायूँ, अली कुली खाँ नाम के गर्वनर के अधीन हो गया।

नीलकंठ महादेव प्रसिद्ध मन्दिर बदायूँ: नीलकंठ महादेव का प्रसिद्ध मन्दिर जिसे लखनपाल ने बनवाया हुआ था। इसे इल्तुतमिश ने तुड़वा दिया था।

इल्तुतमिश द्वारा जामा मस्जिद का निर्माण: बदायूं के स्मारकों में जामा मस्जिद भारत की मध्ययुगीन इमारतों में शायद सबसे विशाल है। इसको नीलकंठ मंदिर के मसाले से बनवाई गई थी और इसका निर्माता इल्तुतमिश था जिसने इसे गद्दी पर बैठने के बारह वर्ष पश्चात अर्थात 1222 ई. में बनवाया था। (महमूद गजनवी के समान ही इल्तुतमिश कुख्यात मूर्ति-भंजक था। इसने अपने समय के प्रसिद्ध देवालयों जिनमें उज्जैन का महाकाल का मंदिर भी था तुड़वाकर तत्कालीन भारतीय कला संस्कृति तथा धर्म को भारी क्षति पहुंचाई थी) जामा मस्जिद प्राय: समांतर चतुर्भुज के आकार की है किंतु पूर्व की ओर अधिक चौड़ी है। भीतरी प्रांगण के पूर्वी कौण पर मुख्य मस्जिद है जो तीन भागों में विभाजित है। बीच के प्रकोष्ठ पर गुंबद है। बाहर से देखने पर यह मस्जिद साधारण सी दिखती है किंतु इसके चारों कोनों की बुर्जियों पर सुंदर नक्काशी और शिल्प प्रदर्शित है। 13 वीं शताब्दी में इसके दो गवर्नर, शम्स-उद-दीन इल्तुतमिश, मस्जिद के निर्माता ने ऊपर उल्लेख किया था, और उनके बेटे रुकन उद दीन फिरुज ने शाही सिंहासन प्राप्त किया। सुल्तान इल्तुतमिश (1211-1236) के समय उसने बदायूं को अपनी राजधानी बनाया था।

सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलज़ी का बदायूं से सम्बन्ध: बदायूं में सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के परिवार के बनवाए हुए कई मकबरे हैं। अलाउद्दीन ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष बदायूं में ही बिताए थे।

रजिया सुल्तान का बदायूँ से सम्बन्ध: रजिया सुल्तान के नाम पर कई सारी फिल्में बन चुकी हैं। इनके हुस्न की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी यह बदायूं की ही थी। रजिया सुल्तान इल्तुतमिश की बेटी थी यह मुगल साम्राज्य की पहली और आखरी शासिका थी। रजिया सुल्तान नई दिल्ली सल्तनत पर 1236 से 1240 तक हुकूमत किया।

शेख निजामुद्दीन औलिया का बदायूं से सम्बन्ध: शेख निजामुद्दीन औलिया (1238-1325) का जन्म भी बदायूं में हुआ था। इनके पिता सैयद अहमद बुख़ारी बदायूं आकर बस गए थे शेख निजामुद्दीन औलिया ने बाद में दिल्ली में शिक्षा प्राप्त की ओर अपनी खानकाह का स्थापित की थी।

अलाउद्दीन आलमशाह का बदायूं से सम्बन्ध: दिल्ली सल्तनत के सैय्यद वंश के शासक अलाउद्दीन आलमशाह ने 1450 ईo में दिल्ली की गद्दी छोड़ दी और बदायूं में आ गये। इसके बाद अपनी मृत्यु (1476 ईo में) तक बदायूं पर शासन करता रहा।

अब्दुलकादिर बदायूनी का बदायूं से सम्बन्ध: अकबर के दरबार का इतिहास लेखक अब्दुलकादिर बदायूनी यहां अनेक वर्षों तक रहा था और इसीलिए बदायूनी कहलाता था। 1571 ई. बदायूं में भीषण अग्निकांड हुआ था जिसको बदायूनी ने अपनी आंखों से देखा था। बदायूँनी का मक़बरा बदायूँ का प्रसिद्ध स्मारक है। इसके अतिरिक्त इमाद उल मुल्क की दरगाह (पिसनहारी का गुंबद) भी यहाँ की प्राचीन इमारतों में उल्लेखनीय है।

दैत्यगुरु शुक्राचार्य की तपोभूमि बदायूँ: लोककथाओं के अनुसार बदायूँ क्षेत्र के निकट में मौजूद उंसावा दैत्यगुरु शुक्राचार्य की तपोभूमि भी रहा है जहां शुक्राचार्य ने भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु 80 हजार साल तप किया था। उसावाँ से दो मील दूर नवीगंज में एक विषाल खेड़ा अब भी है। माना जाता है कि इस खेड़े में शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी का महल था। उसावाँ का पहले ‘उष्नापुरी’ नाम था। शुक्राचार्य का दूसरा नाम उष्ना भी है। मुस्लिमकाल में इसका नाम बदलते-बदलते उसावाँ हो गया।यहाँ आज भी वैषाख कृष्ण त्रयोदषी को विषाल मेला लगता है।

बदायूँ में कांग्रेस कमिटी की नींव: सन 1920 में जिला कांग्रेस कमिटी की नींव डाली गयी और महात्मा गांधी के आव्हान पर बदायूँ की जनता ने शांतिपूर्ण तरीके से आन्दोलन में अपनी हिस्सेदारी निभाई। इस प्रकार से बदायूँ प्राचीनकाल से ही उत्थानो पतन का केंद्र बिंदु रहा है।

नवाब अखलास खां का मकबरा जगप्रसिद्ध बदायूं: बदायूं की तमाम इमारतें यहां की स्वर्णिम इतिहास की गवाह हैं। बदायूं में नवाब अखलास खां के नाम पर ताजमहल जैसा ही मकबरा उनकी बेगम महबूब बेगम ने बनवाया था। यह ताजमहल जैसा ही लगता है। यह प्रेमी नहीं बल्कि एक प्रेमिका के प्यार की निशानी है। सुल्तान सैयद अलाउद्दीन ने भी 1464 में अपनी माता के लिए एक मकबरा बनवाया। यहां नवाब फरीद खां का मकबरा भी काफी प्रसिद्ध है।

सन 1801 में बदायूं पर ब्रिटिश सरकार का शासन: वर्ष 1801 में जिला अंग्रेजों के चंगुल में आ गया था। 1823 में अंग्रेजों ने सहसवान को जिला बनाकर वर्चस्व स्थापित कर लिया और 1855 में सहसवान की जगह बदायूं को जिला बनाकर कामकाज शुरू कर दिया। उस समय जिले को पांच तहसीलों सदर, दातागंज, बिसौली, गुन्नौर और सहसवान में बांटा गया था। इन तहसीलों में बांटे गए अलग-अलग क्षेत्रों में लगान वसूलने के लिए बोली लगाकर ठेके दिए जाते थे। सबसे पहली बार 1803 में तीन साल के लिए बंदोबस्त का इंतजाम कराया गया था। वसूली से संबंधित काम तहसीलदारों की निगरानी में हुआ करता था। उस समय तहसीलदारों को वेतन नहीं दिया जाता था। कमीशन पर काम लिया जाता था। बाद में यह सब काम तहसीलदारों से हटाकर बोर्ड ऑफ रेवन्यू के सुपुर्द कर दिया गया। 1834 से 1837 तक दोबारा बंदोबस्त कराया गया। उसके बाद 1864 से 1870 में गवर्मेंट की मालगुजारी निर्धारित की गई। 1871 के बाद से गांवों की वसूली भी शुरू  कर दी गई।

1840 में ही बन गई थी जेल: बदायूूं में जेल की स्थापना 1840 में हुई, जो आगे चलकर नाकाफी रही। 1857 के विद्रोह में यह जेल नष्ट कर दी गई थी। विद्रोह शांत होने के बाद इसका जीर्णोद्धार कराया गया। अब इसे यहां से हटाने का प्रयास चल रहे हैं।

पहले बदायूं और बिल्सी ही थी म्युनिस्पिलटी: बदायूं और बिल्सी में 1862 में म्युनिस्पिलटी की स्थापना हुई। इसके बाद 1866 में उझानी और 1872 में सहसवान को यह दर्जा मिला। इस समय जिले में छह नगरपालिका और 14 नगर पंचायतें हैं। उप्र के एक्ट 1906 के अनुसार बदायूं में डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की स्थापना की गई।

1846 में चंदा से बनवाया गया था जिला अस्पताल: बदायूं में 1846 में पहला अस्पताल बना। यह जिले के लोगों ने चंदा करके बनवाया था। बाद में इसे सरकार ने अपने हाथ में ले लिया। इसके बाद गुन्नौर, बिसौली और दातागंज के अलावा सहसवान में भी अस्पताल खोले गए।

ब्यौली तथा कोट: ये दोनो ही ऐतिहासिक स्थान है जहाँ प्राचीन इमारतें तथा खण्डहर विद्यमान है।कहा जाता है राजा सालवाहन (उपनाम समुद्रपाल) का राजभवन कोट में था। जिसका बहुत ऊचाँ खेड़ा अब भी विद्यमान है।

खेड़ा नवादा: बदायूँ से लगभग 1 मील दूर है। इसमें बौद्ध-बिहारों के अवषेष प्राप्त हैं।

बदायूं के दर्शनीय स्थल: बदायूं शहर अपने दर्शनीय स्थलों के कारण लोकप्रिय है, क्योंकि इस शहर में साल भर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। मुगलों के शासन वाले शहर में एक समय कई मुगल स्मारक थे लेकिन अब केवल खंडहर पाए गए थे जो शहर में एक मुख्य ऐतिहासिक आकर्षण भी था। यह शहर अपने पूजा स्थलों के लिए बहुत लोकप्रिय है। शहर में जामा मस्जिद बहुत लोकप्रिय राष्ट्रीय विस्तृत है, क्योंकि यह भारत में तीसरी प्राचीन मस्जिद और 23500 लोगों की क्षमता वाली दूसरी सबसे बड़ी मस्जिद है जो हर साल कई भक्तों को आकर्षित करती है, और यह भारत के राष्ट्रीय धरोहर स्थलों में से एक है।

बदायूँ के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान

जामा मस्जिद बदायूँ Jama Masjid Badaun
बदायूं का किला या रोजा बदायूँ Badaun Quila
गौरी शंकर मंदिर बदायूँ Gauri Shankar Temple Badaun
नगला मंदिर बदायूँ Nagla Temple Badaun
नवाब इखलास खां का रौजा (काला ताज) बदायूँ Navab Ikhalas Khan Ka Rauja (Kala Taj) Badaun
सागरताल बदायूँ Sagartaal Badaun
हजरत झंडा मिया साहब बदायूँ Hajrat Jhanda Miya Sahab Badaun
मकबरा मकइया जहां Makbara Makhiya Jahan Badaun
रापड़ वाला गुंबद  Rapad vala Gummbad Badaun
मकबरा बीवी चमन आरा Makbara Bibi Chaman Aara Badaun
बदायूं का ताजमहल ( इखलास खां का रोज़ा ) Badaun Ka Taj Mahal Badaun
बदायूं की भागीरथी गुफा Badaun Ki Bhagirathi Gufa Badaun
छोटे बड़े सरकार की दरगाह Badaun Dargah Badaun

बदायूँ के प्रसिद्ध लोग: बदायूं में कई बड़े संगीतकार भी हुए जिनमें उस्ताद फिदा हुसैन, उस्ताद निसार हुसैन खां, उस्ताद अजीज अहमद खा, और गुलाम मुस्तफा जैसे नाम प्रमुख हैं। शकील बदायूंनी और फ़ानी बदायूंनी जैसे शायर इसी शहर की देन हैं।
शकील बदायूनी (शायर)
फानी बदायूनी (शायर)
अब्र अहसन गुनौरी (शायर)
बेखुद बदायूनी (शायर)
जौहर बदायूनी (शायर)
दिलावर फिगार (शायर)
उस्ताद फ़िदा हुसैन खां (संगीतकार)
उस्ताद निसार हुसैन खां (संगीतकार)
उस्ताद हफीज खां (गायक)
गुलाम मुस्तफा (गायक)

शकील साहब ने लिखा है –

मंदिर में तू मस्जिद में तू और तू ही है ईमानों में
मुरली की तानों में तू और तू ही है अजानों में

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