बिजनौर का इतिहास History of Bijnor in hindi

बिजनौर का इतिहास: बिजनौर प्राचीन काल में कौशल साम्राज्य का अभिन्न अंग था। भारतवर्ष अपनी विविधताओं के साथ अपना गौरवशाली इतिहास को समेटे हुये है, ऐतिहासिक दृष्टि से जनपद बिजनौर का अतीत अत्यंत गौरवशाली और महिमामंडित रहा है।पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, तथा भौगोलिक दृष्टि से बिजनौर का अपना विशिष्ट स्थान है। हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिक सदभाव, आध्यात्मिक, वैदिक, पौराणिक, शिक्षा, संस्कृति, संगीत, कला, सुन्दर भवन, धार्मिक, मंदिर, मस्जिद, ऐतिहासिक दुर्ग, गौरवशाली सांस्कृतिक कला की प्राचीन धरोहर को आदि काल से अब तक अपने आप में समेटे हुए बिजनौर का विशेष इतिहास रहा है। बिजनौर के उत्पत्ति का इतिहास निम्न प्रकार से है। इतिहास में बिजनौर की आज तक की जानकारी।

बिजनौर उत्तर प्रदेश: बिजनौर जनपद मुरादाबाद मण्डल का एक जिला है। बिजनौर उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला एवं लोकसभा क्षेत्र है। यह खूबसूरत और ऐतिहासिक शहर गंगा नदी के तट पर बसा है। 18 वीं शताब्दी के बाद से यह धार्मिक विविधता विकसित हो रही थी, क्योंकि बिजनौर का इतिहास बताता है कि यह शहर मुगलों, नवाबों और अंततः अंग्रेजों समेत कई शासकों के शासनकाल में रहा था। 1801 में इस नगर को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में शामिल कर लिया गया था।

बिजनौर का पुराना नाम व उपनाम: बिजनौर का पुराना नाम व उपनाम कटेहर क्षेत्र था।

बिजनौर का गौरव: बिजनौर को जहाँ एक ओर महाराजा दुष्यन्त, परमप्रतापी सम्राट भरत, परमसंत ऋषि कण्व और महात्मा विदुर की कर्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है, वहीं आर्य जगत के प्रकाश स्तम्भ स्वामी श्रद्धानन्द, अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक डॉ॰ आत्माराम, भारत के प्रथम इंजीनियर राजा ज्वालाप्रसाद आदि की जन्मभूमि होने का सौभाग्य भी प्राप्त है। बिजनौर ने भारतीय राजनीति एवं आजादी की लड़ाई को हाफिज मोहम्मद इब्राहिम, मोलाना हिफजुर रहमान ओर मोलाना अबदुल लतीफ गांधी जैसे कर्म योद्धा भी हुए।

बिजनौर जनपद के पौराणिक इतिहास: इतिहासकारो के अनुसार बिजनोर रामायण काल से जुड़ा हुआ है। वाल्मीकि रामायण में इस क्षेत्र को प्रलंब तथा उत्तरी कारापथ कहा गया है। भगवान श्रीराम जी के छोटे भाई शेषावतार भगवान लक्ष्मण जी के पुत्रों में एक परम् प्रतापी चन्द्रकेतु को इसी उत्तरापथ का राज्य सौंपा गया था। उत्तरी कारापथ बिजनोर के मैदानों से लेकर श्रीनगर गढ़वाल तक का सम्पूर्ण क्षेत्र प्राचीन काल में लक्ष्मण जी के पुत्रों के अधिकार में रहा था। बिजनोर में क्षत्रिय वंश के अधिकार अधिकांश 10वीं शताब्दी के बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से आये थे, लेकिन यह क्षेत्र भगवान लक्ष्मण जी के वंशज तथा कौशल अथवा कौशल्य गोत्र के रघुवंशी राजपूतो का मूल स्थान है। कौशल अथवा कौशल्य गोत्र के रघुवंशी क्षत्रिय आज भी बड़ी संख्या में इस क्षेत्र के अनेक गाँव तथा कस्बों में रहते हैं।

भारत का प्रथम राजा: कहा जाता है कि भारत का प्रथम राजा ‘सुदास’ भी इसी पांचाल देश का था। महाभारतकालीन सभ्यता में भी यह क्षेत्र पांचाल का उत्तरी भाग था।

राम के युग में बिजनौर: जनश्रुतियों के आधार पर बिजनौर की प्राचीनता राम के युग के समय से मानी जाती है, जिसका एकमात्र आधार चाँदपुर के निकट बास्टा में प्राप्त सीता का मंदिर है। कहा जाता है कि मंदिरस्थल पर ही धरती फटी थी और सीताजी उसमें समा गई थीं।

महाभारत काल में बिजनौर: स्थानीय जनश्रुतिओ के अनुसार बिजनौर के निकट गंगातटीय वन में महाभारत काल में मयदानव का निवास स्थान था। भीम की पत्नी हिडिंबा मयदानव की पुत्री थी और भीम से उसने इसी वन में विवाह किया था। यहीं घटोत्कच का जन्म हुआ था। नगर के पश्चिमांत में एक स्थान है जिसे हिडिंबा और पिता मयदानव के इष्टदेव शिव का प्राचीन देवालय कहा जाता है।

बिजनौर की स्थापना: वर्ष 1817 में बिजनौर जनपद की स्थापना हुई। सर्वप्रथम इसका मुख्यालय नगीना बनाया गया। फिर कमीशन ने मुख्यालय के लिए भूमि तलाश शुरू की। फिर झालू में मुख्यालय स्थापना की कोशिश की गई, लेकिन यह रणनीति परवान नहीं चढ़ सकी। झालू में अंग्रेज कमिश्नर की पत्नी पर मधुमक्खियों ने हमला बोल दिया था। उनकी हमले में मौत हो गई थी। झालू में आज भी उनकी की समाधि बनी है। अंतत: मुख्यालय बिजनौर ही बन गया।

बिजनौर जनपद की स्थिति: बिजनौर उत्तर प्रदेश के उत्तरी भाग में है, इसकी उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व की सीमाएं उत्तराखंड को स्पर्श करती है। इसके अक्षांश 29 डिग्री 37 मिनट उत्तर से 78 डिग्री 13 मिनट पूर्व तक है। समुद्र तल से बिजनौर की ऊंचाई 225 मीटर है। बिजनौर जिले के आस पास के अन्य जिले इस प्रकार से है उत्तर में हरिद्वार जिला, पूर्व में नैनीताल जिला और उधमसिंह नगर जिला, दक्षिण में अमरोहा जिला और पश्चिम में मुजफ्फरनगर जिला स्थित है। यहां बहने वाली पाहिका नामक नदी बिजनौर शहर को मुरादाबाद और नैनीताल से अलग करती है। इसकी उत्तरी सीमा से हिमालय की तराई शुरू होती है तो गंगा मैया इसका पश्चिमी सीमांकन करती है। बिजनौर के उत्तर पूर्व में गढ़वाल और कुमाऊं की पर्वत श्रृंखलाएं इसका सौंदर्य बढ़ाती हैं तो इसकी पश्चिमी एवं दक्षिण सीमा पर गंगा के उस पार है विश्व प्रसिद्ध तीर्थ हरिद्वार। बिजनौर अनेक विश्वप्रसिद्ध ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी है। इसने देश को नाम दिया है, अनेक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभाएं दी हैं।

बिजनौर का नाम बिजनौर कैसे पड़ा: शुरुआत में इस जनपद का नाम वेन नगर था। राजा वेन के नाम पर इसका नाम वेन नगर पड़ा। बोलचाल की भाषा में आते गए परिवर्तन के कारण कुछ काल के बाद यह नाम विजनगर हुआ और अब बिजनौर है। वेन नगर के साक्ष्य आज भी बिजनौर से दो किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम में खेतों में और खंडहरों के रूपमें मिलते हैं। तत्कालीन वेन नगर की दीवारें, मूर्तियां एवं खिलौने आज भी यहां मिलते हैं। बगीची के जंगल में माल देवता के स्थान पर आज भी पुरातत्व महत्व की कीमती प्रतिमाएं खेतों में मिलती हैं। लगता है, यह नगर थोड़ी ही दूर से गुजरती गंगा की बाढ़ में काल कल्वित हो गया। दूसरी जनश्रुति के अनुसार बिजनौर की स्थापना राजा बेन ने की थी जो पंखे या बीजन बेचकर अपना निजी ख़र्च चलाता था और बीजन से ही बिजनौर का नामकरण हुआ। और ये भी कहा जाता है कि बिजनौर को विजयसिहं ने बसाया था।

बिजनौर मुरादाबाद का हिस्सा: इतिहासकारो के अनुसार पहले बिजनौर मुरादाबाद का हिस्सा था। 1817 में यह मुरादाबाद से अलग हुआ। नाम मिला नार्थ प्रोविस ऑफ मुरादाबाद। मुख्यालय बना नगीना। इसके पहले कलक्टर बने मिस्टर बोसाकवेट। उन्होंने अपना कार्यभार एनजे हैलहेड को सौंपा। हैलहेड ने नगीना से हटाकर बिजनौर को मुख्यालय बनाया। जिला मुख्यालय नगीना से बिजनौर लाने का मुख्य कारण नगीना समय के अनुकूल नहीं था। यह भी बताया गया कि बिजनौर को इसलिए चुना गया क्योंकि यह मेरठ छावनी के नजदीक था। जरूरत पड़ने पर कभी भी सेना को बिजनौर बुलाया जा सकता था।

बिजनौर जिला का साहित्यिक क्षेत्र में योगदान: महाकवि कालिदास का जन्म कंही और हुआ था, लेकिन उन्होंने बिजनौर में बहने वाली मालिनी नदी को अपने प्रसिद्ध नाटक ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ का आधार बनाया। अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फ़जल और फैज़ी का पालन-पोषण बास्टा (बस्ता उत्तर प्रदेश में बिजनौर जिले के जलीलपुर ब्लॉक में स्थित एक शहर है) के पास हुआ।

उर्दू साहित्य में जनपद बिजनौर का महत्वूर्ण योगदान: उर्दू साहित्य में भी जनपद बिजनौर का गौरवशाली स्थान रहा है। क़ायम चाँदपुरी को मिर्ज़ा ग़ालिब ने भी उस्ताद शायरों में शामिल किया है। नूर बिजनौरी, रिफत सरोश, कौसर चांदपुरी, डिप्टी नजीर अहमद, अख्तर उल इमान, निश्तर खानकाही, कयाम बिजनौरी, अफसर जमशेद, सज्जाद हैदर यलदरम, शेख़ नगीनवी विश्वप्रसिद्ध शायर व लेखक इसी मिट्टी से पैदा हुए। महारनी विक्टोरिया के उस्ताद नवाब शाहमत अली भी मंडावर, बिजनौर के निवासी थे, जिन्होंने महारानी को फ़ारसी की पढ़ाया। संपादकाचार्य पं. रुद्रदत्त शर्मा, बिहारी सतसई की तुलनात्मक समीक्षा लिखने वाले पं. पद्मसिंह शर्मा और हिंदी-ग़ज़लों के शहंशाह दुष्यंत कुमार, विख्यात क्रांतिकारी चौधरी शिवचरण सिंह त्यागी, पैजनियां- भी बिजनौर की धरती की देन हैं। वर्तमान में महेन्‍द्र अश्‍क देश विदेश में उर्दू शायरी के लिए विख्‍यात हैं। धामपुर तहसील के अन्‍तर्गत ग्राम किवाड में पैदा हुए महेन्‍द्र अश्‍क आजकल नजीबाबाद में निवास कर रहे हैं ।

बिजनौर जनपद का सिनेमा जगत में योगदान: बिजनौर की धरती ने भारतीय फिल्म जगत को न सिर्फ प्रकाश मेहरा जेसे निर्माता एवं शाहिद बिजनौरी सरीखे कलाकार दिये बल्कि वर्तमान में फिल्म एवं धारावाहिक के मशहूर लेखक एवं निर्माता दानिश जावेद जैसे साहित्यकार आज भी मुम्बई से बिजनौर का नाम रोशन कर रहे हैं। अमन कुुुुमार त्‍यागी रेे‍डियो रूपक, कहानी आदि के माध्‍यम से अपनी पहचान बना चुके हैं। भारतीय फिल्म जगत के जाने माने निर्माता, निर्देशक, संगीतकार विशाल भारद्वाज का गृहजिला भी बिजनौर ही है! सन 1817 से 1824 तक जिले का मुख्यालय नगीना शहर था।

महाकवि कालिदास का बिजनौर जनपद से सम्बन्ध: संस्कृत के महान कवि कालीदास के प्रसिद्ध नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम की नायिका शकुंतला बिजनौर की धरती पर ही पैदा हुई थीं, जिनका लालन-पोषण कण्व ऋषि ने किया था। कहा जाता है कि हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत एक बार आखेट करते हुए बिजनौर वन प्रांत में पहुंचे और मालिन नदी के किनारे कण्वऋषि के आश्रम के बाहर पुष्प वाटिका में सौंदर्य की प्रतीक शकुंतला से उनका प्रथम प्रणय दर्शन हुआ, फलस्वरूप उनके विश्वप्रसिद्ध पुत्र भरत पैदा हुए, जिनके नाम पर आज भारत का नाम भारत वर्ष है। कहते हैं कि शकुंतला से प्रणय संबंध स्थापित करने के बाद महाराज दुष्यंत अपनी राजधानी हस्तिनापुर तो लौट गए, किन्तु ऋषि दुर्वासा के श्राप से अपनी राजधानी हस्तिनापुर में प्रवेश करते ही यह सारा घटनाक्रम भी भूल गए। कण्वऋषि ने भरत की एक बाह में एक ऐसा रक्षा ताबीज़ बांध दिया था, जिसकी विशेषता यह थी कि उसे केवल पिता ही छू सकता है। राजा दुष्यंत ने भी शकुंतला को निशानी के लिए एक अंगूठी दी थी। कहते हैं कि शकुंतला की अंगूठी मालिन नदी में गिर गई थी, जिसे एक मछली ने निगल लिया, संयोग यह हुआ कि वह मछली एक मछुवारे के हाथ लगी, जिसे चीरने पर उसके पेट से वह अंगूठी निकली जो दुष्यंत ने शकुंतला को दी थी। वह अंगूठी जब राजा दुष्यंत के पास पहुंचाई गई, तब उन्हें अंगूठी देखकर संपूर्ण दृष्टांत याद आया और उसके बाद उन्होंने शकुंतला को अपनी पत्नी और भरत को पुत्र के रूपमें स्वीकार किया। यह सारा घटनाक्रम मालिन नदी के तट और हस्‍तिनापुर का माना जाता है। मालिन नदी बिजनौर में बहती है। कहते हैं कि मालिन नदी के तट पर महाकवि कालीदास ने अपने प्रसिद्ध नाटक अभिज्ञान शाकुंतलतम् को विस्तार दिया था।

चीनी यात्री ह्वेनसांग का बिजनौर मतिपुरा (मंडावर) से सम्बन्ध: बुद्धकालीन भारत में भी चीनी यात्री ह्वेनसांग ने छह महीने मतिपुरा (मंडावर) में व्यतीत किए थे।

बिजनौर पर तुर्क साम्राज्य की स्थापना: हर्षवर्धन के बाद राजपूत राजाओं ने इस क्षेत्र पर अपना अधिकार किया। पृथ्वीराज और जयचंद की पराजय के बाद भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना हुई। उस समय यह क्षेत्र दिल्ली सल्तनत का एक हिस्सा रहा। तब इसका नाम ‘कटेहर क्षेत्र’ था। कहा जाता है कि सुल्तान इल्तुतमिश स्वयं साम्राज्य-विरोधियों को दंडित करने के लिए यहाँ आया था। मंडावर में उसके द्वारा बनाई गई मस्ज़िद आज तक भी है।

औरंगजेब के शासनकाल में बिजनौर जनपद पर अफ़गानों का अधिकार: औरंगज़ेब कट्टर शासक था। ​उसके शासनकाल में अनेक विद्रोही केंद्र स्थापित हुए थे। उन दिनों जनपद पर अफ़ग़ानों का अधिकार था। ये अफ़गानिस्तान के ‘रोह’ कस्बे से आये थे इसलिए ये अफ़गान रोहेले कहलाए और उनका शासित क्षेत्र रुहेलखंड कहलाया। नजीबुद्दौला प्रसिद्ध रोहेला शासक था, जिसने ‘पत्थरगढ़ का किला’ को अपनी राजधानी बनाया। बाद में इसके आसपास के क्षेत्र नजीबुद्दौला के नाम पर नजीबाबाद कहलाई। इस क्षेत्र में कई राजपूत रियासतें भी रही जिसमें हल्दौर, राजा का ताजपुर, शेरकोट आदि प्रमुख थी वहीं साहनपुर जाट रियासत थी। बाद में यह क्षेत्र अवध के नवाब के पास आया, जिसे सन् 1801 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने ले लिया।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बिजनौर जनपद का योगदान: भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम में बिजनौर जनपद ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज़ादी की लड़ाई के समय सर सैय्यद अहमद खाँ बिजनौर में ही कार्यवाहक थे। सर सैय्यद अहमद खाँ की प्रसिद्ध पुस्तक ‘तारीक सरकशी-ए-बिजनौर’ उस समय के इतिहास पर लिखा गया महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है। ग्राम पैजनियां के, चौधरी शिवचरण सिंह त्यागी (1896-1985) के माध्यम से, उनके यहां ,प्रसिद्ध क्रांतिकारियों चंद्रशेखर आज़ाद, पं॰ रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्लाह खाँ, ठाकुर रोशन सिंह ने पैजनिया में शरण लेकर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध क्रान्ति को भड़काया। चौधरी चरण सिंह के साथ शिक्षा ग्रहण करने वाले बाबू लाखन सिंह ढाका ने आजादी की लड़ाई में अपना बलिदान दे दियाl चौधरी चरण सिंह का जन्म माहेश्वरी-जट नामक एक गांव में हुआ था।

दारानगर बिजनौर: महाभारत का युद्ध आरंभ होनेवाला था, तभी कौरव और पांडवों के सेनापतियों ने महात्मा विदुर से प्रार्थना की कि वे उनकी पत्नियों और बच्चों को अपने आश्रम में शरण प्रदान करें। अपने आश्रम में स्थान के अभाव के कारण विदुर जी ने अपने आश्रम के निकट उन सबके लिए आवास की व्यवस्था की। आज यह स्थल ‘दारानगर’ के नाम से जाना जाता है। संभवत: महिलाओं की बस्ती होने के कारण इसका नाम दारानगर पड़ गया।

बिजनौर के दारानगर में विदुरकुटी के गंगा तट पर मेला: बिजनौर के दारानगर में विदुरकुटी के गंगा तट पर युद्ध प्रदर्शन के रूप में क्षत्रियों का मेला भी लगता था, जिसे अपभ्रंश रूप में छड़ियों का मेला भी कहा जाता है। इस मेले में युद्ध एवं मल्ल युद्ध के प्रदर्शन हेतु देशभर के क्षत्रिय राजा भाग लिया करते थे। महाभारत तथा महाजनपद काल में भी यह क्षेत्र बहुत प्रसिद्ध रहा है ।

विदुर आश्रम बिजनौर ज़िला: बिजनौर जनपद से सात मील दक्षिण की ओर गंगा नदी के तट पर स्थित है। दारानगर में ही महाभारत के विदुर का निवास स्थान माना जाता है। महाभारत के अनुसार यहीं पर श्री कृष्ण ने विदुर के घर जाकर भोजन ग्रहण किया था।

सेंदवार बिजनौर: सेंदवार चाँदपुर के निकट स्थित गाँव ‘सेंदवार’ का संबंध भी महाभारतकाल से जोड़ा जाता है, जिसका अर्थ है सेना का द्वार। जनश्रुति है कि महाभारत के समय पांडवों ने अपनी छावनी यही बनाई थी। गाँव में इस समय भी द्रोणाचार्य का मंदिर विद्यमान है।

पारसनाथ का किला बिजनौर: पारसनाथ का किला बढ़ापुर से लगभग चार किलोमीटर पूर्व में लगभग पच्चीस एकड़ क्षेत्र में ‘पारसनाथ का किला’ के खंडहर विद्यमान हैं। टीलों पर उगे वृक्षों और झाड़ों के बीच आज भी सुंदर नक़्क़ाशीदार शिलाएँ उपलब्ध होती हैं। इस स्थान को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि इसके चारों ओर द्वार रहे होंगे। चारो ओर बनी हुई खाई कुछ स्थानों पर अब भी दिखाई देती है।

आजमपुर की पाठशाला बिजनौर: आजमपुर की पाठशाला चाँदपुर के पास बास्टा से लगभग चार किलोमीटर दूर आजमपुर गाँव में अकबर के नवरत्नों में से दो अबुल फ़जल और फैज़ी का जन्म हुआ था। उन्होंने इसी गाँव की पाठशाला में शिक्षा प्राप्त की थी। अबुल फ़जल और फैज़ी की बुद्धिमत्ता के कारण लोग आज भी पाठशाला के भवन की मिट्टी को अपने साथ ले जाते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस स्कूल की मिट्टी चाटने से मंदबुद्धि बालक भी बुद्धिमान हो जाते हैं।

मयूर ध्वज दुर्ग बिजनौर: मयूर ध्वज दुर्ग चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार जनपद में बौद्ध धर्म का भी प्रभाव था। इसका प्रमाण ‘मयूर ध्वज दुर्ग’ की खुदाई से मिला है। ये दुर्ग भगवान कृष्ण के समकालीन सम्राट मयूर ध्वज ने नजीबाबाद तहसील के अंतर्गत जाफरा गाँव के पास बनवाया था। गढ़वाल विश्वविद्यालय के पुरातत्त्व विभाग ने भी इस दुर्ग की खुदाई की थी।

400 साल पुरानी दरगाह बिजनौर: जब सैकड़ो साल पहले सैयद राजू औरंगजेब के जुल्म सितम से बचने के लिए जोगिराम्पुरी इलाके के घने जंगलो में आकर मौला अली की इबादत करने लगे। इसी इबादत के बदौलत सैयद राजू ने हजरत मौला अली के आने का पैगाम लोगों तक पहुंचाया। उसी पैगाम के आगाज के पर हर साल लाखों जायरीन अपनी- अपनी मुराद लिए मौला अली के दरबार में पहुंचते हैं। यहा आने वाले यात्री मानते है की यहां के पानी के नहाने से बीमारियां दूर होती है। साथ ही यहां आये सभी जायरीन इस चमत्कारी पानी को अपने साथ घर ले जाते है। दरगाह-ए-आलिया नज्फे हिन्द जोगीपुरा में प्रत्येक वर्ष लाखों मुस्लिम आते हैं और अपनी -अपनी दुआ मांगते हैं।

बिजनौर के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान

बिजनौर के दर्शनीय स्थल:

कण्व आश्रम बिजनौर
विदुरकुटी आश्रम बिजनौर
दारानगर बिजनौर
सेंदवार बिजनौर
पारसनाथ का किला बिजनौर
आजमपुर की पाठशाला बिजनौर
मयूर ध्वज दुर्ग बिजनौर
फुलसन्दा आश्रम बिजनौर “एक तू सच्चा तेरा नाम सच्चा”
दरगाह ए ओलिया नज्फे हिन्द जौगीरम्पुरी बिजनौर
नजीब उद दौला का किला या सुलताना डाकू का किला बिजनौर
गंगा बैराज बिजनौर
राजा का ताजपुर गिरजाघर बिजनौर
श्री हनुमान धाम किरपुर बिजनौर
इंदिरा पार्क बिजनौर
शुगर मील इंडस्ट्री बिजनौर
आम के बागान बिजनौर
हेंडीक्राफ्ट बिजनौर
सीता मंदिर मठ बिजनौर
वन रिजर्व क्षेत्र अमनगढ़ बिजनौर
निजाब-उद-दुलाह किला नजीबाबाद (गेटवे ऑफ हिमालय) बिजनौर
दरगाह आलिया नजफ-ए-जान जोगिपुरा नजीवाबाद बिजनौर

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2 Responses to “बिजनौर का इतिहास History of Bijnor in hindi”
  1. Mahendra Singh Tyagi January 11, 2023
    • JobInfoGuru January 29, 2023

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